पिता की सीख
एक कहानी सुनाती हूँ मै, अपने बचपन की।जो हर रोज सुना करती थी मैं अपने पापा के मुख से।
एक था पिता जो बुढ़ा होने को चला था। पढ़ा लिखा कर बेटे को बड़ा कर दिया था ।पर बेटा था, जो काम करने का नाम न ले रहा था। कैसे समझाएँ बेटे को वह सोच में पड़ा था। कभी प्यार से समझाता था, कभी वह डाँट लगाता था, पर बेटा जो था पिता के बातों को अनसुना कर देता था और दोस्तों के साथ वह पिता के रूपयें से गुलछड़े उड़ाने निकल जाता था। बेचरा पिता यह सब देख मन ही मन उदास हो जाता था। कैसे बेटे को सही राह पर लाए, वह सोच में पर जाता था। एक दिन बेटा जब घर को आया, पिता ने एक प्रस्ताव उसके सामने लाया। बेटा जिस दिन तुम अपनी मेहनत से एक रूपया मुझे कमा कर दोगे। उस दिन से मैं तुम्हें रोकना-टोकना बंद कर दूंगा।यह बात सुनकर बेटा बहुत खुश हो गया।बोला, “पिताजी कल ही मै आपको एक रूपया कमा कर देता हूँ।” कल होकर बेटा जब घर से निकला तो मन ही मन बहुत खुश था। सोच रहा था की आज मैं एक रूपया लाकर पिताजी को दे दूंगा और रोज-रोज की डाँट सुनने से मुक्ति पा लूँगा।वह पूरे दिन इधर-उधर घूम-घूम कर जब घर आया और पिता के हाथों में एक रूपया देते हुए कहा यह लिजिए पिताजी। पिता ने उस रुपये को ध्यान से देखा और उसे देखकर फेंक दिया और बोला, “बेटा यह तेरे मेहनत का कमाया हुआ नही।” यह सुनकर बेटा सोचा शायद पिताजी ने अपना वाला रूपया पहचान लिया है इसलिए वह वहाँ से चूपचाप निकल गया।अगले दिन वह घर से निकला और दोस्त से एक रूपया उधार लेकर घर आया और बोला यह लिजिए एक रूपया मै कमा कर लाया हूँ। पिता ने फिर उस रूपया को देखा और फिर उसे फेंक दिया।बेटा फिर बिना कुछ पूछे वहाँ से निकल गया। बेटे और पिता का यह क्रम चार- पाँच दिनों तक चलता रहा ।इन सब चीजों से परेशान एक दिन बेटा ने सोचा पता नही पिताजी को कैसे पता चल जाता है कि यह रूपया मेरा कमाया हुआ नही है। आज मै मेहनत से कमा कर रूपया लेकर जाता हूँ देखता हूँ पिताजी क्या करते है। उस दिन वह मेहनत करके एक रूपया कमा कर लाया और पिता के हाथों में देते हुए कहा ,”यह लिजिए रूपया इसे मैंने मेहनत से कमाया है।” पिता ने फिर से उस रूपया को देखा और फेंकने लगा। यह देख बेटे ने झट से पिता का हाथ पकड़कर कहा,” पिताजी इसे मत फेंको, इसे मैने मेहनत से कमाया है।” यह सुनकर बुढा पिता मुस्कुराने लगा और बोला,” आज तुम अपने मेहनत का एक रूपया मुझे फेंकने नही दे रहे हो और तुम जो मेरे द्वारा कमाए हुए सैकड़ो रूपया जो अपने दोस्तो के साथ बर्बाद करके आते हो, सोचों मुझे कितना बुरा लगता होगा।” यह सुनकर बेटा लज्जित हो गया।अगले दिन सुबह वह पिता के कामों मे हाथ बटाने लगा।पिता भी बेटे को मेहनत करते देख खुश रहने लगा।
~अनामिका