पिता की छांव
दूर क्षितिज के पार है,सपनों का इक गांव।
चंद्र किरण देती वहां,नयना को इक छांव।
बचपन की अठखेलियां ,घोड़े कुर्सी दौड़।
पिता संग थे खेलते, खुशियां की थी ठांव ।
बहना भैया संग में,करते खूब धमाल।
पापा जब-जब डांटते , मम्मी करे कमाल।
श्रम करते हैं रात दिन,पापा रखते ध्यान।
माह दिवस अंतिम करे, मम्मी मालामाल।
पालक पोषक है पिता,देव तुल्य सम मेव।
कर्ता धर्ता आप हैं,पिता ब्रह्म मम एव।
मात पिता की छांव में,जीवन स्वर्ग समान।
एक सत्य ब्रह्मांश है, पिता तुल्य त्वं देव।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
लखनऊ