“पिता की क्षमता”
“पिता की क्षमता”
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पिता हर-घर की शान-बान है,
हर बच्चे की , वही पहचान है।
हर पिता भी सदा, एक पुत्र है;
वो परिवार का जीवन-सूत्र है।
मां होती गर, ममता की मूरत;
पिता हैं, हर क्षमता की सूरत।
पिता में रखें, सदा निज निष्ठा;
बची रहेगी , आप की प्रतिष्ठा।
रहे वो, सदा अपनों के करीब;
चाहे दशा हो अमीर या गरीब।
दुख सहे, दुख न दे अपनों को;
पूरा करे,सबके हर सपनों को।
खुद रहे भी अगर,वो फटेहाल;
चाहते वो परिवार हो खुशहाल।
कष्ट झेल, जो कुछ धन कमाते;
परिवार उससे ही, मौज उड़ाते।
जिन बच्चों के, जो मां ना होती;
मां बन निजकर्तव्य निभाते वो।
हर संकट में,और सारे कामों में;
हर कदम, ममता झलकाते वो।
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स्वरचित सह मौलिक;
©®✍️पंकज कर्ण
….कटिहार(बिहार)।
तिथि:१६/६/२०२२