पिता एक पृथक आंकलन
पिता – एक पृथक आकलन-
——————-+–+——————-
आशा है, बल है, आश्रय, विश्वास है
छुपा हुआ ,अनजाना, हिम्मत का एहसास है
समझना इसे है थोड़ा मुश्किल है
जीवन में यह जंतु , दूसरी बार दुर्मिल है।
मुंहफट और मुहजोर है ,बाहर से जटिल कठोर है
मन से बेचारा किंतु, बहुत ही कमजोर है ।
इस प्रजाति के सारे नमूने, बस ऐसे ही होते है ,
किसी न किसी पंगे में , उंगली दसों डुबोते है ।
करते है मनमानी, कभी किसी की न मानी
बड़े हठीले, अति अभिमानी ।
सुनते सबकी है , कहते अपनी है
स्वयं पर अटूट विश्वास , श्रद्धा बहुत घनी है ।
प्रभु की यह रचना निराली विचित्र है,
परिचय संक्षिप्त है, नहीं माता सम यश अर्जित हैं
यह एक अनोखा, अनूठा संस्थान है
समझे खुद को बहु विधा पारंगत,
स्वयं सिद्ध विद्वान है ।
हर क्षण शुद्ध लेक्चर बांटता है
छोटी छोटी बातो पर , रायता काटता है
दुनियां से झगड़ता लड़ता है , पिटता है, मरता है
कुटुंब के लिए संभव सब करता है
ये संतान के शैशव से यौवन , जवानी से बुढ़ापे तक
अझेल, खड़ूस संताप है
हिल रही हो गर्दन , खडखड़ हड्डियों का आलाप है
बना रहता हर हाल में जीवन भर बाप है ।
मित्र बहुत सच्चा है, परिवार का अनपेड गाइड है
जनरेशन का अंतर , विचारों की फाइट है
अपना हुक्म बजाता , रॉन्ग चाहे राइट है ।
निज स्वभाव व्यवहार से , घर भर में बदनाम है
स्वच्छंद संतानों का किंतु, बाधित होता जब काम है
विषम स्थिति को धता बताने,
वो ही अंतिम मुकाम है ।
है इसका बड़ा गुप्त गणित ,
रखता सारे रिश्ते सुरक्षित
रिक्त स्वयं का कोष कर देता
शेषफल से भी रहता वंचित ।
इसके व्यक्तित्व का भूगोल , किसी मीटर से नही चिन्हित
उसके मन की विशालता,
असीमित, अपरिमित
एक बार आया है , हर बच्चे का सरमाया है
मुसीबतों की गर्म धूप में , शीतल गंभीर छाया है ।
अदृश्य रहकर भी अपना कर्तव्य संपूर्ण जीता है
इस प्राणी को प्रचलित संबोधन
तात, जनक, बाप या पिता है ।
रचयिता
शेखर देशमुख
J-1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू -2
सेक्टर 78, नोएडा (उ प्र)