पिताश्री
पितृ दिवस पर श्रद्धा सुमन
पिता है पीपल की घनी छाव!
जिनकी गोद ही था मेरा गाव!!
अब न वो पीपल की घनी छाव!
नाही ब्रह्म मुहूर्त उठने की काव !!
फिर भी संस्कार,वो जो दे गए ,
अगली पीढी को देने का है दाव!!
अटूट निर्बाध गति चली परम्परा,
रह गई है भग्नावशेष की छाव !!
उठा है सर से जबसे उनका साया!
मैने स्वयं को बहुत बृद्ध सा ही पाया!!
वो जब तलक घर पर मौजूद थे,
अब है सर पर सुफेद बालो की छाया!!
‘फादर्स डे’ क्या,रोज़ वंदन करता हू,
इसीलिए नही किसी खौफ का साया!!
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,पत्रकार
202 नीरव निकुज ,सिकंदरा,आगरा-282007
मो:9412443093