पितर पाख
पितर पाख
देवत हावव तुमन सब झन ला नेवता,
मोर घर मा आहू हमर पितर देवता।
नम्मी श्राद्ध के दिन मा आही मोर महतारी,
ओकर सुरता मा आंसू मोर बोहाथे संगवारी।
मोला छोड़के जेन दिन मोर बाबू हा गे रहीस,
तेन दिन ले अपन आप मा बेसहारा कस लगे लगिस।
आगे हावय पितर पाख आही मोर घर मा दाई ददा,
बरा सोहारी चुरोके खवाबो फेर आखरी मा करबो बिदा।
मुंदरहे ले उठके नहा खोर के पानी देबर जाथन,
घर मा सुग्घर चौक पुरा के हुम जग देके सुमरथन।
पितर देवता हा भोग लगाए बर कऊआ बनके आथे,
रोटी पीठा अऊ जम्मो जिनिस ला छानी मा जेवाथे।
लगती नवराती पितर पाख हा आखरी कोती आथे,
हुम जग अऊ फूल पान बिसर्जन करके पितर बिदा करथे।।
✍️ मुकेश कुमार सोनकर, रायपुर छत्तीसगढ़