पाहन पूजा खूब की
विनोद सिल्ला के दोहे
पाहन पूजा खूब की, किए तीर्थ उपवास।
अंतर्मन खोजा नहीं, फिजूल किए प्रयास।।
गंगा-जमुना भी गया, करके आया स्नान।
बाहर पावन हो गया, भीतर रहा मशान।।
कर्म-कांड करता रहा, बन कोल्हू का बैल।
नहीं शुद्धता भाव में , मिटा न मन का मैल।।
भक्ति करे भगवान की, ऊंच-नीच के भेद।
नहीं भरेगा वो घड़ा, पेंदे में हो छेद।।
जुबां तो भजन गा रही, मन में छिड़ा कलेश।
ढोंग करे हरि भजन का, रहा हृदय में द्वेष।।
धूप-दीप जलते रहे, फिर भी भूला राह।
बना धर्म भीरू फिरे, नहीं ज्ञान की चाह।।
सिल्ला तू भी कर सदा, सबसे वो व्यवहार।
स्वयं के लिए अपेक्षित, करता जो हर बार।।
-विनोद सिल्ला