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12 Jul 2021 · 1 min read

*पावस के मेघ-!

उमड़ते और घहरते
ये पावस के मेघ
कौंधा चमके घनप्रिया
रह रह बरसे मेघ

गिरति बूंद अवनी बहे
बहे धरा रेवान
होती बरषा सुखद की
मनुज हृदय अब चैन

छारहे सघन काले
मेघ वर्षा के लिए
झूमते है तरु विटप
मानो अगवानी के लिए

होति न कौंधा के बिना
अब पावस की रैन
चपला चमके कौंधा लपके
और दादुर के बैन

(शरद कुमार पाठक)
डिस्टिक (हरदोई)
उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 432 Views
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