पावस की रात
शुन्य हृदय में प्रेम की,गहन जलद बरसात।
गहन अँधेरा कर गयी, पावस की यह रात।।
झुलस रही हूँ अग्नि-सी, बढ़ा दिया संताप।
मुझ विरहण को यूँ लगे, दिया किसी ने श्राप।।
शोक-गीत गाने लगे, जुगनू एक जमात।
गहन अँधेरा कर गयी, पावस की यह रात।।
घिरी याद की बदलियाँ, नस-नस बढ़ती पीर।
नवल मेघ जल बिन्दु से, नयन भरे हैं नीर।
छेड़े बिजुरी को कभी, करे घटा से बात।
गहन अँधेरा कर गयी, पावस की यह रात।।
रोम-रोम बेसुध पड़ा,अंतस भर कर शोर।
कठिन प्रलय की रात यह, कैसे होगी भोर।।
चाँद सितारे छुप गये, सिसक रहे जज्बात ।
गहन अँधेरा कर गयी, पावस की यह रात।।
शुन्य हृदय में प्रेम की,गहन जलद बरसात।
गहन अँधेरा कर गयी, पावस की यह रात।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली