पावन हो मनभावन हो –
तुम पावन हो , मनभावन हो ,मेरे भारत देश की माटी –
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई चार फूल हैं बगिया के।
खुशबू जुदा-जुदा है किंतु सब श्रंगार हैं बगिया के ।
ये चारों मिल एक साथ सब गीत शांति के गाते।
भारत की इस फुल बगिया में प्यार के फूल खिलाते।
जिस धरती पर जन्मे हम शत बार उसे अभिवादन हो।
तुम पावन हो मनभावन हो, मेरे भारत देश की माटी।
सदियां गुज़र गई हैं हमको मां की लोरी सुने हुए।
जाने कितने ख्वाब समेटे अपने मन में बुने हुए।
आशीष वचन और मां की दुआएं संग में अपने लिए हुए।
गंगा मां की पावन गोदी जन्नत सा सुख लिए हुए।
पर्वतराज हिमालय तुम तो प्रहरी सदा महान हो
तुम पावनहो मनभावन हो मेरे भारत देश की माटी।
गंगा यमुना और हिमालय चहुं ओरसे घेरे हैं।
वृक्ष लताएं पक्षी बादल तू इनकी ये तेरे हैं।
चांद सितारे और हवाएं हर पल डाले डेरे हैं।
देवों ने भी इस माटी के नित्य लगाए फेरे हैं
जन्म हो रेखा बार-बार धन्य सदा तुम पावन हो।