*पावन धरा*
पावन धरा
पावन धरा को अपावन न करना।
सुरक्षित सदा हो लुभावन समझना।।
सदा नाज़ रखना धरा पावनी है।
करो स्वच्छ निर्मल मधुर भावनी है।।
दूषित न करना बहुत मोहिनी है।
विकृत न करना सदा शोभनी है।।
प्रेमिल निराला सहज रंग इसका।
निर्माणकर्ता सदा ईश्व जिसका।।
निर्मम न बनना धरा कोमली है।
बहुत खूबसूरत प्रिया श्यामली है।।
बिगाड़ा जो इसको वही रो रहा है।
घायल बना वह स्वयं खो रहा है।।
इसपर नदी नद पहाड़ों की शोभा।
थिरकती इसी पर सदा भानु आभा।।
चमकते सदा पेड़ पावन धरा पर।
चहकते परिंदे सुगंधित धरा पर।।
करो नित्य पूजा सदा प्रीति वन्दन।
धरा पावनी नित्य गन्धी सुनन्दन।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।