पारो
पारो।
-आचार्य रामानंद मंडल।
रामू छोट सन कसबा मे एगो जलपान के दूकान चलबैत रहय।वो अपन घरवाली लाडो संग दूकान के पीछे वाला घर मे रहय। सुबह सात बजे से दस बजे आ दू पहर तीन बजे से सात बजे साम तक मुरही,घुघनी आ कचरी -चप बेचे से फूर्सत न रहय।वोकर घुघनी आ कचरी चप बड़ा स्वादिष्ट रहय।लोग मल्हान के पता के दोना में सुसुआ सुसुआ के खाय।माने करूगर आ तपत तपत घुघनी आ कचरी चप।लोग घर सनेश के रूप मे मुरही कचरी चप खरीद के ले जाय।
रामू के एगो बेटा भी तीन साल के रहे।वोकर घरवाली लाडो के फेर से पांव भारी भे गेल। जौं सात महिना बीत गेल त लाडो के काज करे मे दिक्कत होय लागल।लाडो अप्पन घरबाला रामू से बोलल -सुनैय छी।
रामू -बाजू न।
लाडो -आबि हमरा से काज न होयत। हमरा उठे -बैठे मे बड़ा दिक्कत होइअ।
रामू -त कि करू। दूकान केना बंद कर दूं।जीये के त इहे आसरा हय। दूकानों खूब चल रहल हय।
लाडो -एगो बात करू न।
रामू -कि।
लाडो -हमर छोटकी बहिन पारो के बुला लूं न।
रामू -बात त ठीके कहय छी।
लाडो -काल्हिय चल जाउ।काल्हि दूकान बंद रहतैय।
रामू -अच्छे।
गाहक -कि हो रामू।आइ दूकान काहे बंद कैला छा हो।
लाडो -आइ न छथिन।वो हमर नहिरा गेल छथिन।
गाहक -कि बात।
लाडो -हमरा देखैय न छथिन। हमरा मदत के लेल हमरा छोटकी बहिन के बुलावे ला गेल छथिन।
गाहक -अच्छे। काल्हिये से दूकान चलतैय न।
लाडो -हं।
रामू सबरे दस बजे ससुरार पंहुच गेल। रामू ससुर -सास के गोर छू के परनाम कैलक। छोटकी सारी पारो अपन बहनोई रामू के गोर छू के परनाम कैलक।आ गोर धोय ला एक लोटा पानी देलक। रामू अपन गोर धोय लक।
ताले पारो अंखरा चौकी पर जाजिम बिछा देलक। रामू वोइ पर बैठ गेलक।
ससुर बुझावन बाजल -मेहमान । लाडो के हाल चाल बताउ।
रामू बाजल -हम लाडो के मदत के लेल पारो के बुलाबे आयल छी।
बुझावन बाजल -कि बात।
रामू -लाडो के सातम महीना चल रहल हय।घर आ दूकान के काज करय मे दिक्कत हो रहल हय।
रामू के सास बाजल -हं। पारो के ले जाउ।इ मदत करतैय।
बुझावन बाजल -अच्छा। पारो अपना बहिन तर जतय।
रामू बाजल -हम आइए लौट जायब।
बुझावन बाजल -हं। पहिले भोजन त क लू।
पारो -चलू। जीजा।भोजन लगा देले छी।
रामू बाजल -चलू।
रामू भोजन कैलक।आ कुछ देर लोट पोट क के पारो के लेके घरे चल देलक।सांझ छौअ बजे घरे पहुंच गेल। पारो अपन बड बहिन लाडो से गला लिपट गेल।
लाडो अठ्ठारह बरिस के गोर युवती रहय।सुनरता वोकरा अंग- अंग से टपकैत रहय। लाडो अपना काज मे मगन रहय।आबि लाडो राहत के सांस लैत रहय। रामूओ काज मे ब्यस्त रहय।
दूकानो खूब चलय। गाहको पारो के देखे के लेल ललायित रहय। लेकिन सभ देखिय भर तक सीमित रहय।
अइ बीच होरी बीत गेल। लाडो एगो सुन्नर बेटी के जनम देलक। पारो अपन बहिन आ बहिंदी के सेवा सुसुर्सा मे लागल रहय।एनी पारो मे शारीरिक परिवर्तन होय लागल।वोकर पेट मे उभार देखाय लागल। कानाफूसी होय लागल।लाडो पुछैय त पारो कोनो जबाब न देय।बात उड़ैत उड़ैत पारो के बाप बुझावन तक पहुंच गेल। बुझावन अपन बेटी लाडो इंहा भागल -भागल आयल।
बुझावन बाजल -मेहमान।इ कि सुनय छीयै।
रामू बाजल -हमरो आश्चर्य लगैय हय।
लाडो बाजल -हमरा कुछ न बुझाइ हय। पारो कुछ न बोलय हय।खाली गुमकी मारले हय।
बुझावन बाजल -मेहमान ।हम अंहा पर पंचायती बैठायब। अंहा पारो के बुला के लयली आ अंहा सुरक्षा न कै पैली।हम आबि मुंह केना देखायब।आ पारो से बिआह के करतैय।
बात हवा में फैइल गेल। काल्हिये भोरे पंचैती बैठल।
सरपंच बाजल -पारो बेटी।डरा न।साफ साफ बोला।
तोरा साथ इ काम कोन कैलन हय।
पारो निचा मुंहे मुंह कैले रहे।कुछ न बोले।कुछ देर के बाद पारो बाजल -कि कहु सरपंच काका।इ जीजा के काम हय।
रामू बाजल -पारो इ तू कथी बोलय छा। कैला हमरा बदनाम करैय छा।
पारो बाजल -जीजा हम झूठ न बोलय छी।अंहू झूठ न बोलू। होरी के रात अंहा हमर सलवार के छोड़ी न खोल देले रही।हम होश मे त रही। लेकिन विरोध करैय के ताकत न रहय। अंहा होरी के बहाने भांगवाला पेड़ा खिला देले रही। बहिनो के खिला देले रही।अपनो खैलै रही। हमरा कुछ ज्यादा खिला देले रही।
रामू कुछ न बाजल।अपन मुंह निचा क ले लेलक।
सरपंच बाजल -एकर एकेटा इंसाफ हय। रामू के पारो से विआह करे के पड़तैय।सारी से बहनोई के बिआह करे पर सामाजिक बंधन न हय।इ अच्छा भी होतैय।
लाडो बाजल -जौ हमर साईं इ गलती क लेलन हय।त हिनका पारो से बिआह करे के पड़तैय।कि करब।विधना के इहे मंजूर हय तो हमरो मंजूर हय।हम दूनू सौतिन न,बहिने लेखा रहब।
रामू बाजल -सरपंच काका के इंसाफ हमरा मंजूर हय।
बुझावन बाजल -सरपंच साहब के फैसला हमरा मंजूर हय।
सरपंच बाजल -त चलू गांव के महादेव स्थान मे।
सभ लोग महादेव स्थान मे गेलन।
अपन साईं से लाडो बाजल -लूं सेनूर आ महादेव बाबा के साक्षी मानैत पारो के मांग भर दिऔ।
रामू महादेव बाबा के साक्षी मानैत पारो के मांग मे सेनूर भर देलक।
हर हर महादेव के आवाज से महादेव स्थान गूंजायमान हो गेल।
नौ महीना बाद पारो एगो सुन्नर लड़िका के जनम देलक।
आइ दूनू पत्नी लाडो आ पारो के संगे रामू खुश आ खुशहाल हय।
स्वरचित @सर्वाधिकार रचनाकाराधीन।
रचनाकार -आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सह साहित्यकार सीतामढ़ी।