पारले जी
दरवाज़े की घंटी लगातार बजे जा रही थी….
अरे बाबा खोलती हूॅं ज़रा सब्र करो कहती हुई मिनाक्षी ने गुस्से से दरवाज़ा खोला तो सामने धोबिन खड़ी थी ।
” ये तेरा कौन सा टाइम है आने का ? ”
गुस्सा काहे हो रही हैं भाभी आप ही बताईं की हम शाम को नही आईं त कब आईं ?
तूझे तो पता है ना ये मेरी पूजा का समय होता है…
गैस पर चाय का पानी चढ़ाती हुई मिनाक्षी ने धोबिन से कहा ” तू चाय बना मैं पूजा करके आती हूॅं । ”
चाय बनते-बनते मिनाक्षी आ गई…
अब तू जा बैठ मैं चाय लेकर आती हूॅं , ये कह मिनाक्षी चाय छानकर साथ में कुछ मठरियां और ‘ पारले जी ‘ का एक पैकेट रख बाहर कुर्सी पर बैठ गई ।
धोबिन की तरफ चाय बढ़ाती हुई बोली…ले तुझे चाय के साथ ‘ पारले जी ‘ पसंद है ना ।
” भाभी कुछ खाली डिब्बा मिलेगा ? ”
हां मिलेगा ! पर एक बात बता तू इतने घरों में जाती है सब पैसे वाले हैं लेकिन हर चीज मुझसे ही मांगती है क्यों ?
” काहे की आप हमका बहुत पसंद हैं । ”
” क्यों मैं क्यों पसंद हूॅं तूझे ? मैं तो बहुत डांटती हूॅं ।”
” अईसन है भाभी की ऊं सब लोग मठरी जैसे हैं सखत…बहुत मशक्कत करे के पड़त है । ”
” आप ई ‘ पारले जी ‘ जैसन थोड़ी सखत हैं लेकिन झट मुॅंह मा घुल जात हैं । ”
” ऐही खातिर हमका ‘ पारले जी ‘ बहुत ही पसंद है । ”
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08/09/2021 )