*पायलिया* मुक्तक
पायलिया
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बरसती बारिशों में आग पायलिया लगाती है।
दिलों में कोकिला सी राग भर सरगम सुनाती है।
बनी ये रेशमी धड़कन ज़माने को करे घायल।
सरकती चादरों पे रात नीदों को चुराती है।
डॉ.रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका- साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी(मो.-9839664017)