पाप्पा की गुड़िया.
पाप्पा की गुड़िया
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मैं थी गुड़िया
पाप्पा की.
सोने जैसे बाल
और कांच की
जैसे ऑंखें.
मैं थी गुड़िया
पाप्पा की.
मुछसे कितने
प्यार करते थे वे.
रत्न थी अनमोल
मैं उनकी.
नाम दिया था
वो मुछ को हीरा
क्यों कि
‘हीरा ‘ही था
मैं उनका.
किसीने इतना
नहीं करता था
प्यार मुछसे
जितना
किया पाप्पा ने
मैं थी उसका
दिल का हीरा.
गाते थे वे कविताएं
बड़े बड़े कवियों की.
सिखलाया मुछे भी
अच्छी अच्छी कविताएं.
कहाँ छिप गयी हैं
पप्पा आप…
आ जाईये सिर्फ
इक बार मेरे पास.