पापा तुम्हारे ना होने पर.…..
पापा तुम्हारे ना होने पर पर बस इतना कर पाई हूं ,
यादों को सहेजी,और बस चुपचाप रो लेती हूं,
क्रूर नियति नित छिनती रही सजीवता… तुम्हारी,और मैं बेबस बेसबब बेहिसाब अश्रु बहाती हूं …
निगाहें दूंढती थी निसां वो छत ,तख्त ,दहलीज जो कभी मिल्कियत थी तुम्हारी …. चंद अधूरे ख्वाहिशे लिए…. दीवार पर लटकी है …मेरे मासूम से ख्वाब को जिद्दो- जहद, ताबीर करना.. मसला है अब साथ एहतेराम मुख़लि सी का..
.जो वादा की तुमसे निभा रही हूं समेट के ज़ूर. ए ताब …
अशमा नापने को बेताब हूं….
अंजू पांडेय अश्रु रायपुर
✍️दुनिया रंग बिरंगी:राष्ट्रीय साझा काव्य संकलन में प्रकाशित
(१जिद्दो- जहद_ प्रयत्न
२तद्बीर, परिश्रम ज़ूर. दम; ताक़त, ३एहतेराम _आदर,मेहनत , ४निगाहें नज़र,५बेबसअसहाय, ६बेसबाब _अकारण, ७दहलीज चौखट, ८मिल्कियतसंपत्ति,९बेहिसाब_अनगिनत, १०ताबीर_चेष्टा, प्रयत्न, ११मसला__मुद्दा, १२ताब_चमक, दीप्ति, सामर्थ्य
ख़्वाब का नतीजा बयां करना
मुख़लिसी_सच्चा या “वफादार।” यह अरबी शब्द “इखलास” से लिया गया है,
….✍️अंजू”अश्रु”