पापा की परी
अपने पापा की लाडली परी
सदा रहेगी मायके में जैसे राजदुलारी
खूब लाड लडाई जाएगी
नाजों से पाली जाएगी।।
ज्ञान की दहलीज़ पर
नन्हें कदमों को बढ़ाएगी
कुछ करने का जज्बा लेकर
सचमुच बहुत कुछ कर जाएगी।।
एक दिन घड़ी फिर वो आ ही जाएगी
उस घर की चहक और किलकारियां
अपने साथ ही ले जाएगी।।
उस दिन सूना होगा
वो आंगन और वो दहलीज़
जिसे सुबकते देख
कठोर दिखने वाले पिता भी जाएंगे पसीज।।
देगी ढ़ेरों आशीर्वाद
घर की बूढ़ी छाया
जिसे ना रहा अब मोह ना रही माया।।
आशीर्वचन देने आएंगी भाभियां
जो संभालने में लगी होंगी
अब उस की घर की सभी चाबियां।।
गले लगाने आएंगे
चाचा, ताऊ और
तथाकथित भाइयों की टोली
जिन्होंने अनेक बार चलायी थी
व्यंग्य बाणों से चुपचाप गोली।।
आएंगे मिलने पड़ोस से भी अनेक लोग
जिन्हें उसकी पढ़ाई के वक्त लगा था
आगे बढ़ने से रोकने का भयंकर रोग।।
भीगी आंखों से देखेंगे वो निरीह प्राणी सभी
जो तोड़कर बंधन खूंटे से जाना चाहते हैं अभी।।
उस दिन से उसका जीवन पूरी तरह बदल जाएगा
जिस दिन कोई अजनबी शख्स
उसकी हर ख्वाहिश का अधिकारी बन जाएगा।।
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भगवती पारीक ‘मनु’
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