पापा की कहानी (भाग-२)
जन्म 20अगस्त 1964
पापा को बचपन से ही संगीत में बहुत रूचि है। शूरूआती शिक्षा के साथ और घर के काम के साथ ढोलक बचाना भी अपने नाना जी से सीखते थें। पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा लगाव नहीं था तो विद्यालय (3किमी दूर) जातें और बीच रास्ते खेतों में मिट्टी की मूर्तियां बनातें रहतें और फिर विद्यालय समय के अनुसार सबके साथ घर आ जाते। मूर्ति कला के साथ,दिवारों पर चित्रकारी, लकड़ी के खिलौनें, मुखौटे आदि बनाने में निपुण हैं। आठवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़ दी और रामलीला मंडली में सोलह साल की उम्र में चले गए।
ढोलक,तबला,हारमोनियम,बासूरी,झांझ,नगरिया आदि वाद्ययंत्रों को सीखा पांच साल की अटूट मेहनत से सीखा।और भारतीय संस्कृति में जितने भी धार्मिक उत्सव मनाऐ जातें हैं जैसे कृष्ण जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, दशहरा,और भी महापर्वों में, धार्मिक स्थलों में, अखाड़ों में मंडली में पूरी टीम के साथ संगीतमयी कार्यक्रमों में सहयोग देने लगें।वादन के साथ-साथ गायकी और एक्टिंग भी सीखते थें।10साल मंडली में काम करते हुए 27-28 साल की उम्र में उभरते हुए कलाकारों में गिनती होने लगी और अपनी प्रतिभा से लोगों के दिलों में जगह बनाने लगें।30साल की उम्र होने तक दिग्गज कलाकारों के साथ प्रतियोगिताओं में पुरूस्कार और ख्याति प्राप्त होने लगी।मप्र के कई इलाकों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के जगहों पर भी रामलीला मंडली का आयोजन करते थें।अब मंडली में “उस्ताद” की पदवी मिल चुकी थी।तबला वादन में मसहूर हो चुके थें।
बड़े बड़े भजन गायक कलाकारों की संगति होने लगी। भगवदगीता संगीतमयी कार्यक्रमों में मां सरस्वती की कृपा से मंच मिलने लगें।
नाटकों के किरदार में राजा हरिशचंद्र, विक्रम बेताल,श्रवण कुमार, राम लीला में श्रीराम,विभीषण के पात्रों की और श्री कृष्ण जन्माष्टमी में कृष्ण जी की भूमिका निभाई।