पापाजी
पिता कहे,पापा या कहते हैं कोई बाऊजी जी ,
शब्द अनमोल है केवल मात्र नहीं ये सम्बोधन जी ,
पिता सबके होते मेहनती, संघर्षरत व्यक्तित्व जी ,
आराम नहीं करते जूतों की रहे घिसी एड़ियां जी ,
थामें अटैजी,थैला हाथों की खुरदरी हथेली जी ,
अटल पिता को समझना नहीं इतना आसान जी
फिकर से भरे पर चेहरे पर रहती मुस्कान जी ,
जेब में सम्हाले रखते हैं बच्चों के अरमान जी ,
खुद गिने-चुने कपड़ों में गुजारे जीवन सारा पापाजी ,
बच्चों पर लुटा देते हैं पिता सर्वस्य खजाना जी ,
पिता है महान कई दफा निज ख्वाहिश भी मारी जी ,
होती है पापा आप पर सारे घर की जिम्मेदारी जी,
नरम दिल से पापा ऊपर से नारियल जैसे कठोर जी,
पिघल जाते जान जाते जब परेशानी अपनों की जी,
साथ नहीं हो हमारे पर स्मृतियां होंगी सदा साथ जी ,
पग -पग पर सही राह ले जाएगी यही सही बात जी ,
हर पल रहेगा हमारे सिर पर आपका आशीर्वाद जी ,
लिखूं पिता पर जितना सब होता फिर भी कम ही जी।
– सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान