पानी
हैंडपंप और ट्यूबवेल सूखे
धरती बनी अलाव रे,
दादा जी ने पेड़ लगाए
हमने सारे काट दिए,
न ई पौधे न लगी एक भी,
सूखी चूनर धानी रे |
गंगा सूखी, यमुना सूख
सरस्वती भी लोप रे,
बिन मौसम कोसी उपनाम
ये कुदरत का कोप रे,
पूजा पूवर्जों ने जिनको
हमने उनको बांध दिया,
आज लग रहा विजय नहीं वो
थी मेरी नादानी रे |
रोटी रुखी, थाली सूखी
न नसीब में दाल रे,
टिके खेत में नहीं जवानी
बुरा गाँव का हाल रे,
जो बोया वो काट रहा जग
है दस्तूर पुराना ये,
जैसी करनी वैसी भरनी
ये कबिरा की बानी रे |
जग पानी के लिए रो रहा
होकर पानी – पानी रे
रहते वक्त न ये जग चेता
बिगड़ी तभी कहानी रे
नदियाँ सूखी , पोखर सूखे
सूखे कुँए तलाव रे