पानी सिर से बह रहा , जाय
पानी सिर से बह रहा , जाय
भाड़ में देश ।
किये करोड़ो खर्च जब ,,तब ये बने विशेष ।।
तब ये बने विशेष ,भरा घर केवल अपना ।
लोकतंत्र का भला , देखता रहता सपना ।
न्याय नीति की बात , आज हो गयी पुरानी ।
ऐसे करतब रोज ,देश है पानी पानी ।।
सतीश पाण्डेय