पानी मे जब झूठ के पक जाती है दाल
गढ़ता है समभाव से , सारे कलश कुम्हार !
होते हैं तैयार पर,….सही आठ मे चार! !
लाते हैं परिवार मे,,अपना सभी नसीब!
हो जाता कोई धनी, ….कोई रहे गरीब! !
होता है तब वाकई दिल को बडा मलाल !
पानी मे जब झूठ के,पक जाती है दाल !!
नही पकेगा शर्तिया, ..कुछ भी करो उपाय !
घी मे चावल डालकर, जो भी रहा पकाय! !
रमेश शर्मा.