पानीपुरी (व्यंग्य)
आज मैंने देखा- विश्वास,श्रद्धा, त्याग और धैर्य की पराकाष्ठा! हम जीवन में सभी ध्येय शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं । कई बार अपेक्षित परिणाम नहीं प्राप्त होने पर खिन्न हो जाते हैं। लेकिन जो मैंने देखा उसमें मुझे भविष्यत परिणाम से भयाक्रांत मुख नहीं अपितु अधीरता को शनैः-शनैः कंठ तक विस्थापित कर उसे पीता हुआ मुख दृष्टिगत हुआ; कहीं कोई नैराश्य-भाव नहीं!
वस्तुतः बात यह है कि आज मैंने बालिकाओं के एक समूह को पानीपुरी के ठेले को पूरी तरह से घेरे देखा।सम्भवतः, इस प्रकार का जटिल घेराव अंतिम बार महाभारत के सैन्य-व्यूह में देखा गया होगा! समस्त समूह के मुख में पानीपुरी की अभिलाषा पानी बन कर दौड़ रही थी। उपमा के माध्यम से- जैसे हिमनद सूर्य की किरणें देखकर ही जलमय हो जाते हैं,ठीक उसी प्रकार।
पानीपुरी के ठेले पर वैसे भी मेलों की भीड़ अप्रासंगिक ही होती है; विश्व का एकमात्र धंधा जो मंदा नहीं होता,सदाबहार व्यापार है। हाँ, तो लड़कियों के उस समूह में हड़बड़ी नाम का भाव नहीं दिख पड़ता था। सभी शांत अतिशय धैर्यवान दीख पड़ती थीं। न पुरी समाप्त होने का भय ,न भीड़ बढ़ने डर। सभी निश्चिंत अपनी पारी की प्रतीक्षा में अपने अकथ त्याग का परिचय दे रही थी। हम लड़कों की तरह किसी ने झपटा भी नहीं मारा,आश्चर्य घोर आश्चर्य! क्या इस प्रकार का त्याग इहलौकिक है भी,मेरे मन ने माना,यह तो पारलौकिक है!
मैंने ठेले के निकटवर्ती क्षेत्रों में जो देखा दंग रह गया। आगे की लड़कियां चाव से एक के बाद दूसरी फिर तीसरी फिर और कितने ही मैंने गिनती छोड़ दी…पानीपुरी निगलती जा रही थी। वह दृश्य मुझे पता नहीं अन्य कई विषयों की ओर विषयांतर होने को बाध्य कर रहा है। पीछे वाले श्रेणी में वे लोग हैं जो सरकारी परीक्षाओं की तैयारी में संलग्न अभ्यार्थी हैं और आगे की श्रेणी में गंतव्य प्राप्त कर चुके सरकारी कर्मचारी!
-ऋतुपर्ण