पाती प्रिय के नाम
मित्रो नमस्कार …………………..
प्रिय के नाम …………………
मलय पवन की भीनी भीनी मादकता का अहसास होता है तुम्हारी उडती चुनर देखकर …………
कितना सुखद सामीप्य होता है लगता है चपल चन्द्र की चंचल चांदनी में ,,खड़ा हूँ भूलकर सब
तुम प्रकति नटी का निर्माण और रचना बन जाती हो और मैं तुम्हे पढ़ते रहना चाहता हूँ
शुक्ल पक्ष की सभी कलाओ से लेक aमन के आश्रम की अनंत शांति तुममे ही पता हूँ ……………
कुसमो के अधरों पर हँसता यौवन देखकर तुम्हारी याद छा जाती है मानस पटल पर …
वर्षा के मोतियों में चमकती तुम्हारी मुस्कान लख कर समर्पण करता हूँ तुम पर …
तुम्हारी चंचल मादक कजरारी मतवाली आंखे सिहरा देती है प्रिय पूरा तन बदन सरिता सी ,लहराती ,बलखाती इठलाती तुम्हारी चाल करती है सदा चैन हरण ,,,,,,,,,,,