पाठशाला कि यादें
पाठशाला के वो दिन बडे़ सुहाने होते हैं,
जिन्हें याद करके अब आँख में आसु भर आते हैं…..
जिंदगी के सफर में नये दोस्त तो बहोत मिलते हैं,
लेकीन पाठशाला के वो पुराने दोस्त दिल से जिन्दगीभर नहीं जाते हैं……
मँथस-इंग्लिश से तो अपनी कभी जमी नहीं थी,
इतिहास-भुगोल सामने आते ही दुनिया
गोल-गोल घुम जाती थी…….
पाठशाला जाने का बहोत कंटाला आता था,
पर दोस्तों के चेहरे याद करके जाने का
मन भी करता था……
एक ही टिचर थी कई सालों से, पर वो अब टिचर नहीं, उनमें मुझे मेरी मांँ दिखाई
देती थी……..
माँ जैसे ही डांटती थी, और उन्हीं की तरह
प्यार से समझाती भी थी……
बीच की छुट्टी का तो अंदाज ही निराला था,
पुरे दुनियाभर का स्वाद उन बिस मिनट में
चख लिया ऐसा लगता था………
सब के डब्बे से अलग-अलग सब्जी खाकर
मन त्रृप्त हो जाता था, उसी के लिये तो
पाठशाला जाने का मन भी करता था…..
होमवर्क तो कभी पुरा नहीं करते थे,
सालभर टिचर की डाँट सुना करतें थे,
पर नोटबुक को भी मार्क्स मिलेंगे ये सुनते ही
रात-रात भर जाग कर आखरी परिक्षा से पहले नोटबुक पुरा करते थे……
उन्हीं कक्षाओं में, उन्हीं दोस्तों के साथ, उन्हीं
टिचर के साथ, फिर से जीना चाहती हुँ,
लेकिन पाठशाला के वो दिन लौटके नहीं
आते है,
बस एक याद बनकर हमेशा के लिये दिल में
रहते हैं, ये सोच कर मन ही मन रोती हुँ……