पागल सा दिल मेरा ये कैसी जिद्द लिए बैठा है
पागल सा दिल मेरा ये कैसी जिद्द लिए बैठा है
दो किनारे हम ये मिलने की उम्मीद लिए बैठा है
एक पल के लिए भी मेरे जहन से हटता ही नहीं
ना जाने कोनसी अदा मेरा मुर्शीद लिए बैठा है
पागल सा दिल मेरा
कहते है चंद चेहरे जो इश्क में खास हो जाते है
वो जमाने से दूर खुदा के पास हो जाते है
इश्क में हर कोई पूजा सा नूर हुआ करती हैं
शायर अपनी गजलों में ऋतुराज और समीर गुप्त लिए बैठा है
पागल सा दिल मेरा
चंद ही थी शिकायते जो उसके दर पर रह गई
उससे मिलने की तड़प मेरे डर पर रह गई
काश हाथ दुआ मे नही उसके दर पे बड़ाए होते
जिसकी मोहब्बत दिया बनकर मेरी कब्र पर रह गई
बे मौत मरते हैं आशिक ऋतुराज खुद को शहीद लिए बैठा है
पागल है साला पागलो सी उम्मीद लिए बैठा है
ऋतुराज वर्मा