पांडे जी की चाहत
पहले सब्जी लाने के लिए नाक भौ सिकोड़ने वाले पांडे जी आज कल बिन कहे ही सब्जी मार्केट जाने को उतावले रहने लगे।
जानबूझ कर पहले दो दिन की और अब तो एक दिन की ही सब्ज़ी लाने लगे । पत्नी ने पूछा तो बहाना बनाने लगे कभी कहते की आज सब्जी ताज़ा नहीं थी …. कभी कहते की रोज लाने से ताज़ा मिल जाती है ….. कभी कहते की इसी बहाने सैर भी हो जाती है ।
पांडे जी पैंतीस छत्तीस साल के साधारण से दिखने वाले आशिक मिजाज व्यक्ति थे। और कोई भी मौका छोड़ना उनकी फितरत में शामिल नहीं था। और उनके रोजाना सब्जी मार्केट जाने की वजह थी, रजनी ।
रजनी चौबीस पच्चीस साल की खूबसूरत सी शादी शुदा बहुत ही हंसमुख सी लड़की थी और अपने पति को , शराब पी कर मारने पीटने व तंग करने की वजह से छोड़ चुकी थी।
उसके हंसमुख और बिंदास व्यवहार के कारण उसकी दुकान अच्छी खासी चल पड़ी। दुकान पर भीड़ लगने लगी।हर कोई, चाहे कितनी ही देर खड़े रहना पड़े सब्जी उससे ही लेकर जाता । रजनी किसी भी तरह की बात का कभी बुरा नहीं मानती , जो जिस भाषा में बात करता उसी भाषा में जवाब दे निरुत्तर कर देती।मगर चालक भी कम ना थी सामने वाले को देख कर ही उसकी नीयत समझ जाती । फिर उसी तरह बात करती।
यही वजह थी कि पांडे जी घंटों खड़े रह कर भी सब्जी लेने के बहाने रजनी को ताड़ते रहते और मस्ती मजाक भी कर लेते। रजनी भी पांडे जी की फितरत से पूरी तरह अवगत हो चुकी थी । पांडे जी बातों में तो मास्टर थे ही बातों बातों में कुछ न कुछ इशारा करने की कोशिश करते पर रजनी समझ कर भी अनजान बन जाती।
काफी दिनों के प्रयास के बाद भी जब दाल नहीं गली तो पांडे जी ने सीधे सीधे बात करने का मन बना कर पहुंचे । थोडी दूर खडे होकर इंतज़ार करने के बाद पास में किसी को भी ना देख लपक कर पहुंचे ।
” क्या पांडे जी आप इतनी देर से दूर खड़े थे तरकारी नहीं लेना चाहते क्या ?”रजनी समझ तो गई थी पर जान बुझ कर पूछा ।
“अरे वो तो लेंगे ही ,पर हमें तुमसे कुछ बात करना था ” इसलिए इंतजार कर रहे थे ।
” तो कहिए ना पांडे जी इस तरह घबरा क्यों रहे है” रजनी ने हंसते हुए कहा ।
“रजनी तुम हमें बहुत अच्छी लगती हो , हम तुम्हे पसंद करने लगे है ” पांडे जी ने आखिर दिल की बात कह ही दी ।
“हमें भी आप अच्छे लगते है पांडे जी ” रजनी ने भी पांडे जी की ओर देख कर कहा ।
“तो फिर क्यों ना फिल्म होटल वगैरह का प्रोग्राम बनाओ कभी” पांडे जी खुश हो कर बोले।
“हां पांडे जी जरूर चलेंगे पहले ब्याह तो हो जाए”
आप मुझसे ब्याह कर लीजिए फिर आप जहां चाहे लेकर जा सकते है । रजनी ने तिरछी निगाहों से देख कर कहा ।
ब्याह के नाम पर पांडे जी की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई ।” ब्याह कैसे कर सकते है हम तो शादी शुदा है ।” हम कह रहे थे कि…..
बस, पांडे जी हम समझ रहे हैं आपकी बात कोई आप से हंस बोल तो इसका मतलब ये नहीं कि आप गलत समझने लगे। हम तो सभी से हंस बोल कर अपना दर्द छिपाने की कोशिश कर लेते है इसका मतलब ये नहीं कि आप हमें बाजारू समझे । आप जैसे लोगों को ये शोभा नहीं देता ।
घर में आपकी पत्नी है जाइए उसे घुमाइए फिराइए फिल्म दिखाइए जहां मरजी ले जाइए ।
पांडे जी को लगा मानो रजनी को गलत समझ कर बड़ी भूल कर दी हो । कुछ भी कहते ना बना धीरे से खिसकने में ही भलाई समझी ।
” अरे पांडे जी ब्याह करने का इरादा हो तो बता दें हम तैयार है” तभी पीछे से रजनी ने आवाज दी और खिलखिला कर हंसने लगी ।
पांडे जी को महसूस हुआ मानो रजनी ने उन्हे भरे बाजार नंगा कर दिया हो । और उस दिन के बाद पांडे जी ने कभी बाजार का रूख नहीं किया ।
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© गौतम जैन ®