** पांच शेर **
तेरी जुल्फ की तरह उलझी है मेरे प्यार की गुत्थी
जितना सुलझाना चाहता हूं उलझती ही जाती है ।।
ख्वाहिशे मिटती नहीं उनके मिटने से मगर
आज मिटने को दीवाना सरेआम आया है ।।
क्यों दीवार-ए-तन्हाई खड़ी है हम दोनों के बीच
हम तो नहीं हुए थे तुमसे ख़फ़ा कभी।।
ना जाने कौन सा धीमा जहर मेरे सीने में उतर आया है
ना चैन से जीने मुझे देता है ना चैन से मरने मुझे देता है ।।। कशमकश दिल में जुबां पे ना तुम्हारा नाम आया
भरी महफ़िल में फिर से गुमनाम पैगाम आया है ।।
?मधुप बैरागी