*पहले वाले मन में हैँ ख़्यालात नहीं*
पहले वाले मन में हैँ ख़्यालात नहीं
*****************************
पहले वाले मन में हैँ ख़्यालात नहीं,
बातों में भी पहले वाली बात नहीं।
जब से औझल नजरों से मनमीत हैँ,
फीके हैँ दिन सारे, रंगी रात नहीं।
मोती से आँसू झरते भीगे नयन,
सावन भी सूखा, होती बरसात नहीं।
दिल में शहनाई बजती यादों भरी,
सहता जाऊँ कोई भी अवघात नहीं।
सूनी राहें मनसीरत बढ़ता गया,
रुकता ना जाए गम का हिमपात नहीं।
*****************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)