पहले दौलत की खातिर, सब कुछ किया निछावर,
पहले दौलत की खातिर, सब कुछ किया निछावर,
रिश्तों की कीमत भूले, बस चाही माया अंबर।
चमकती दौलत के आगे, सब कुछ लगने लगा फीका,
रिश्तों की डोर ढीली, भावनाओं का झूठा सिक्का।
जो कभी दिल के करीब थे, अब रहे नहीं संजीदा,
मोहब्बत की जगह अब, है दौलत का ही वादा।
रिश्ते बिखरने लगे, खुशियाँ भी दूर हो गईं,
जिंदगी की जमीं पर, दौलत ही मंजूर हो गई।
अब ना वो अपनापन, ना रिश्तों में मिठास है,
दौलत ने सब कुछ छीना, पर दिल में उदास है।
कहीं खो गई वो हंसी, जो रिश्तों में थी बसी,
पहले दौलत थी पर अब, जिंदगी भी बेअसर सी।