पहले थी तेरी अब मेटी बारी
पहले थी तेरी अब मेटी बारी
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पहले थी तेरी अब मेरी बारी,
देश को लुटेगें हम बारी बारी।
आम की ऑंखें बांधकर पट्टी,
खोल दी है लूटखोरों ने हट्टी,
लूटने आये सफ़ेदपोश धारी।
देश को लूटेंगे हम बारी बारी।
पार्टी बदली पर रंग ढंग वही,
लूटखोरी की और जंग बढ़ी,
जन जन की मत गई है मारी।
देश को लुटेंगे हम बारी -बारी।
भ्र्ष्टाचार की पहन कर टोपी,
अन्यर्मन से नियत भी खोटी,
बन कर आये काले व्यापारी।
देश को लूटेंगे हम बारी-बारी।
जनतन्त्र के वोट की कीमत,
कोठी – बंगला कार खिदमत,
हाथ पकड़ तलवार दो धारी।
देश को लूटेंगे हम बारी बारी।
शान – शौकत शक्ति प्रदर्शन,
माया ठगनी के हरदन दर्शन,
धन – दौलत वैभव पर नारी।
देश को लूटेंगे हम बारी बारी।
देशभक्ति का पहन मुखौटा,
पाप कमाई में हर पल लोटा,
मौके के गिरगिट व्यभिचारी।
देश को लूटेंगे हम बारी बारी।
कुछ दिन का श्रम मनसीरत,
पांच वर्ष भोगते क़ृत्रिम तीर्थ,
सुख सुविधा सर्वोतम जारी।
देश को लूटेंगे हम बारी बारी।
पहले थी तेरी अब मेरी बारी।
देश को लूटेंगे हम बारी बारी।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)