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2 May 2024 · 1 min read

पहले जैसी कहाँ बात रही

मर्यादा का ना नाम रहा
संस्कारों का ना वक्त रहा है
स्पष्ट शब्दों की वाणी में
मधुरता करना प्रवेश रहा
कैसे चलन में हम जी रहे हैं
समाज का ना डर रहा।

कितनी फुहड़ता आ गई है
देखो अब इन गानों में
शालीनता जैसे खो गई है
सबके चेहरों से।

अब छोटे- बड़े की
शर्म -ओ हया ना रही
प्रथा जैसे बन गई
जाम से जाम टकराने की
कौन बहन कौन भाभी
भेद न अब कोई रहा।

पहले प्राकृतिक वातावरण का
होता भरपूर प्रयोग था
तन ढककर मन खिलखिलाकर
होता एक दूजे का संवाद था
अब कहाँ पहले जैसी बात रही।

हरमिंदर कौर ,
अमरोहा, (उत्तर प्रदेश)

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