गांव मेरा क्या पहले जैसा है
मेरे मौहल्ले की हवा वही है,
लेकिन अब हवा का रुख अलग है ।
मेरे गांव की गली वही है,
लेकिन गली का आवो – हवा अलग है ।
मेरे गांव की चौपाल वही है,
लेकिन चौपाल पर बैठे चेहरे अलग हैं ।
मेरे गांव से शहर की दूरी वही है,
लेकिन उस दूरी के बीच की उलझन अलग है ।
मेरे शहर का नाम वही है,
लेकिन नाम के साथ बदनामी का दाग अलग है ।
मेरे शहर के गली मौहल्ले वही हैं,
लेकिन उन गली , मोहल्लों की रौनक अलग है ।
मेरे शहर के चौक ,चौराहे वहीं हैं,
लेकिन उन चौक ,चौराहों की बरकत अलग है ।
जब सब कुछ पहले जैसा है,
तो फिर आपस में भाईचारा की कमी क्यों।
जब सब कुछ पहले जैसा है,
तो फिर समाज में नफ़रत का बीज क्यों ।
जब सब कुछ पहले जैसा है,
तो गांव,कस्बे,शहर,प्रदेश और देश में दंगे क्यों ।