पहली भारतीय महिला जासूस सरस्वती राजमणि जी
थी सरस्वती राजमणि, भारतीय जासूस
नेताजी पर वो सदा, गर्व करे महसूस
जी हाँ, मेरा ये दोहा पढ़के चौंकिए मत! अधिकांश पाठकों को जानकर हैरानी होगी कि सरस्वती राजमणि भारतीय राष्ट्रीय सेना की एक अनुभवी महिला सैनिक व जासूस थीं। उन्हें सेना के सैन्य खुफिया विंग में अपने जासूसी कार्यों के लिए जाना व माना जाता है।
राजमणि का जन्म 11 जनवरी 1927 ई. को रंगून, बर्मा में हुआ था। जो कि वर्तमान में म्यांमार नामक राष्ट्र है। नेता जी ने राजमणि से प्रभावित होकर उन्हें ‘सरस्वती’ नाम दिया था। राजमणि के पिताजी के पास एक सोने की खान थी और वह रंगून के सबसे अमीर भारतीयों में सुमार होते थे। उद्योग से अधिक राजमणि जी और उनके पिता को भारत को आज़ाद देश देखने की प्रबल इच्छा थी। इसलिए राजमणि का परिवार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का बहुत कट्टर समर्थक था। अत: उन्होंने आंदोलन में धन का खूब योगदान दिया।
राजमणि जी को नेता जी ने सरस्वती नाम क्यों दिया? इसकी दिलचस्प कहानी है कि मात्र 16 साल की उम्र में यानि सन 1940 ई. को रंगून में नेताजी के भाषण से प्रेरित होकर, राजमणि ने अविलम्ब अपने समस्त आभूषण आई.एन.ए. को भेंट कर दिए। नेताजी यह सोचते हुए कि इस नवयुवती ने भोलेपन में आकर अपने सभी आभूषण का दान कर दिया होगा! अत: नेताजी आभूषण लौटाने उनके घर गए। नेताजी को अपने घर पर पाकर राजमणि जी का परिवार गदगद हो गया। जब उनके परिवार को नेता जी के आने का कारण पता लगा तो सबने एकमत होकर कहा कि इन आभूषणों का इस्तेमाल सेना के लिए किया जाये। और मैं भी अन्तिम साँस तक देश की आज़ादी के लिए एक सिपाही की तरह लड़ूंगी। नेताजी ने राजमणि के दृढ़ संकल्प को सलाम किया और राजमणि से प्रभावित होकर, उन्होंने वहीं राजमणि का नाम ‘सरस्वती’ रखा।
सन 1942 में जब एक ओर गाँधी जी ने “अंग्रेज़ों भारत छोडो” का नारा बुलन्द किया, तब दूसरी ओर राजमणि को आई.एन.ए. की झांसी रेजिमेंट की रानी में भर्ती किया गया था और वह सेना की सैन्य खुफिया शाखा का हिस्सा बनी।
राजमणि की जासूसी की अनेक कहानियाँ-क़िस्से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बिखरे पड़े हैं। उनमें से एक मशहूर क़िस्सा है—लगभग दो बरसों तक, राजमणि और उनकी कुछ महिला सहयोगियों ने लड़कों का वेश धारण किया और आई.एन.ए. के लिए खुफिया जानकारियाँ जुटाई। एक लड़के के रूप में जब राजमणि प्रस्तुत हुई तो उसने अपका नाम “मणि” रख लिया था। एक बार, उनके एक साथी को ब्रिटिश सैनिकों ने पकड़ लिया, तो उसे बचाने के लिए, राजमणि ने एक नर्तकी के रूप में ब्रिटिश सैनिक शिविर में अपनी प्रस्तुतियाँ दीं। नृत्य के साथ-साथ उन्होंने ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों को नशा दिया, और जब वे बेसुध हो गए तो अपने सहयोगी को राजमणि ने मुक्त करवा लिया। हालाँकि इस घटना में जब राजमणि अपने साथी के साथ भाग रही थी, तो एक ब्रिटिश गार्ड ने राजमणि के पैर में गोली मार दी थी लेकिन वह फिर भी न पकड़ी जा सकी। इस घटना से प्रेरित होकर अनेक फ़िल्मकारों ने अपनी फ़िल्मों में परिस्थिति अनुसार इसका फ़िल्मांकन किया है।
सेना में राजमणि जी का कार्य तब समाप्त हो गया, जब दूसरे विश्व युद्ध के उपरान्त नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आई.एन.ए. को भंग कर दिया था। राजमणि जी अन्तिम बार श्रीधर कौशिक द्वारा निर्देशित ‘वॉयस ऑफ ए इंडिपेंडेंट इंडियन’ नामक एक लघु फिल्म में दिखाई दी थीं। यह फ़िल्म यू टूब पर मौजूद है।
स्वतंत्रता सेनानी श्रीमती सरस्वती राजमणि जी ने दीर्घ जीवन पाया था। देश की आज़ादी में नेताजी सुभाष के लिए किये गए कार्यों को वह अपने जीवन का स्वर्णकाल मानती रहीं। उन्हीं मधुर स्मृतियों में खोये-खोये 13 जनवरी, 2018 ई. को हृदय गति रुक जाने से इस महान स्वतंत्रता सेनानी का निधन हो गया। कृतज्ञ राष्ट्र सदैव उनके किये गए देशभक्ति कार्यों के लिए उन्हें याद रखेगा। जय हिन्द।
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(आभार संदर्भ विकिपीडिया व अन्य पुरानी पत्र-पत्रिकाओं से)