पहली तनख्वाह
आज रमा बहुत खुश थी सुबह जल्दी नींद खुल गई । रात भी ठीक से हो नहीं पाई कल के इंतजार में नींद ही कहां आई थी , जल्दी से तैयार हुई और घर के काम निपटाते आफिस का टाइम हो गया ।खुशी इतनी थी की कदम ज़मीं पर भी नहीं पड़ रहे थे आज पहली तनख्वाह जो मिलने वाली थी ।
कुछ दिनों पहले ही कालेज खत्म होते ही तुरन्त ब्याह हो गया था अनिल शासकीय कार्यालय में कार्यरत थे। गंभीर स्वभाव ,अच्छी खासी तनख्वाह थी । किसी तरह की कमी न थी ।रमा भी अनिल के आफिस जाने के बाद अकेली रह जाती।समय व्यतीत करना मुश्किल हो जाता
और इतनी पढ़ाई-लिखाई का भी कुछ उपयोग नहीं हो रहा था दबी जुबान से अनिल से बात की तो साफ मना कर दिया हमारे यहां की परंपरा है की औरतें काम नहीं करती नौकरी का ख्याल दिल से निकालो और घर सम्हालो ।
और रमा मन मार कर चुप रह गई। फिर कभी इस विषय पर बात नहीं की । कुछ महीने बीत गए
अचानक एक दिन अनिल ने पुछा
“क्या अब भी नौकरी करना चाहती हो ”
अंधा क्या चाहे दो आंखें, हां तो कहा पर खुल कर कुछ कह न सकी ।
आज शर्मा जी बता रहे थे उनके डिपार्टमेंट में एक पोस्ट खाली हुई है। “अगर तुम करना चाहो तो बात करूं ”
” ये आप कह रहे हैं आपने तो मना कर दिया था” रमा को अब भी यकिन नहीं हो रहा था ।
” तुम चाहो तो ये नौकरी कर सकती हो।”
“जी जरूर करुंगी”
रमा की तो खुशी का ठिकाना न था । और शर्मा जी से कह कर अनिल ने नौकरी लगवा दी । रमा भी मन लगा कर काम करने लगी । आज उसे पहली तनख्वाह मिलने वाली थी । खुशी की अधिकता उसके चेहरे से ही व्यक्त हो रही थी ।जैसे तैसे दिन बीता और हाथ में तनख्वाह आई तो खुशी का पारा वार न रहा सोच रही थी की जाते ही सारी तनख्वाह अनिल के हाथ में रख दूंगी और फिर दोनों साथ ही शापिंग करने जाएंगे।
घर पहुंच कर जैसे ही दरवाजे के पास पहुंची अनिल का स्वर सुनाई दिया । “हम इतने निष्ठुर भी नहीं है पापा जी ” उसकी उदासी हमसे देखी ना गई । हमारी पत्नी है वो , और हमारे एक बार मना करने पर कभी दुबारा नहीं कहा तो हम उसे कैसे अंदर ही अंदर घुटने देते उसकी खुशी में ही तो हमारी खुशी है । कभी सोचा भी न था की हमेशा कठोर से दिखने वाले अनिल का दिल इतना कोमल होगा । तनख्वाह से सौ गुना ज्यादा खुशी अनिल की बातों से मिल गई थी ।
अंदर आ कर देखा रमा के पिताजी आज हुए थे अनिल उन्हीं से बात कर रहा था पिताजी को प्रणाम किया और तनख्वाह निकाल कर अनिल के हाथ में रख दी ।और प्यार भरी आंखों से देखा ।अनिल ने रुपये वापस दे कर कहा
” इसे तुम हीअपने पास रखो पहली कमाई है तुम्हारी” अनिल से उसकी आंखों की चमक छुपी न रह सकी। उसे देख मुस्कुरा कर कहा
“अब तो खुश हो ना तुम्हारी खुशी से बढ़ कर कोई भी नियम या परंपरा नहीं है।”
रमा होंठों से तो कुछ न कह सकी पर अनिल को उसकी आंखों में बहुत कुछ दिखाई दे गया ।
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हैदराबाद