पवनपुत्र
राघव रो-रोके बेहाल
बेहोश धरा पे लखन लाल
‘लक्ष्मण आँखें खोल ज़रा,
तेरा भाई सामने देख ज़रा
इतना क्यों मुझे सताता है?
क्यों मुझसे न बतलाता है?
क्यों विचलित मुझको करता है?
क्यों मौन तू धारण करता है?
तू भाई के लिए लड़ जाता था,
सामने कोई भी हो भिड़ जाता था!
ऐसे लक्ष्मण शांत न रह
कुछ तो बोल, अरे कुछ तो कह!
बिन तेरे किस काम का मैं?
बिन लक्ष्मण के “राम” क्या मैं?!’
श्रीराम विलाप कर रहे घोर
वानर सेना थी भाव विभोर
कोई उपाय न सूझता था
शक्तिबाण से लखन झुझता था
तभी अचानक बोले विभीषण
‘लखन पर भारी बीतता हर क्षण!
इस शक्ति का तोड़ न ज्ञात
पर वैद्य सुषेण बड़े विख्यात
यदि वह यहाँ पे आये
एक बार लखन को देख पाए
निश्चित ही उपाय बताएंगे
इस शक्ति का तोड़ बतलायेंगे!’
इतना सुनके बोले हनुमत
‘समय नहीं आज्ञा दे रघुपत
तुरंत लंका को जाता हूँ
सुषेण वैद्य को लाता हूँ!’
आशीर्वाद दिए श्रीहरी
हनुमत ने तुरंत उड़ान भरी
वैद्य को नींद से उठा न पाए
तो झोपडी समेत वैद्य ले आये
सुषेण वैद्य ने लखन को देखा
‘इस शक्ति का तोड़ बस एक है लेखा
हिमालय में उगती एक औषधि अनूठी,
अन्धकार में चमके संजीवनी बूटी
जो भोर से पहले ला सकते
तो ही लक्ष्मण को बचा सकते!’
हनुमत ने तनिक न देर करी
लिया आशीष और उड़ान भरी
यहाँ लखन का संघर्ष जारी था
हर पहर जो बीते भारी था
सहसा सेना में शोर हुआ
सबका ध्यान आकाश की ओर हुआ
केसरी नंदन लौट आये थे
अपने साथ पहाड़ी लाये थे
‘संजीवनी बूटी पहचान न पाया
तो पूरी पहाड़ी उठा हूँ लाया!
सुषेण वैद्य आप न देर करे
तुरंत लखमन का उपचार करे!’
सुषेण वैद्य ने दवा बनायीं
हनुमत की मेहनत रंग लायी
लखन लाल को होश आया
भाई ने उनको गले लगाया
हनुमत की हुई बहोत बढ़ाई
‘तुम मुझे प्रिय हो भरत से भाई!’
राघव ने हनुमत को सीने से लगाया
पूर्ण वानर सेना में हर्षोलास छाया
मूर्छा से जागे लखन लाल
ये ‘पवनपुत्र’ का था कमाल