पलाश का साधुत्व
ऐ पलाश! मैंने देखा है तुम्हें फूलते हुए,
देखा है मैंने-
तुम्हारी कोंप-कोंप से प्रस्फुटित होते-
यौवन को..
मैंने देखा है,
तुम्हें वर्ष भर फाल्गुन की बाँट जोहते…
पर,नहीं देखा मैंने-
बचपन आज के बच्चों में,
यौवन आज के युवाओं में,
और मैंने नहीं देखी-
गरिमामयी वृद्धावस्था…
हाँ,मैंने जरूर देखा-
असमय युवा होते बचपन को,
युवावस्था में वृद्ध होते यौवन को
और वृद्धावस्था में युवा दिखने की
चेष्टा करते प्रौढ़ को…….
और मैंने देखा है-
हर पल,हर कदम,हर क्षण,
मरते आदमी को,,,,
यदि नहीं देखा ,
तो बस ..
तुम्हारे जैसा साधू-ऐ पलाश!
जो साल भर ,,
करता हो फाल्गुन का इंतज़ार..
और आते ही यौवन,,
धारण कर लेता हो-
जोगिया चोला-
हर शाख …हर प्रस्फुटन…..
शुचि(भवि)