पलायन का दर्द
ये कवि की लेखनी भी दर्द अब तो लिख नहीं सकती।
बना है घाव जो तन पर, किसी को दिख नहीं सकती।
बहुत निर्मम हुई सरकार हर सुविधा नदारद है –
मगर सरकार के दामन में लग कालिख नहीं सकती।
ये कवि की लेखनी भी दर्द अब तो लिख नहीं सकती।
बना है घाव जो तन पर, किसी को दिख नहीं सकती।
बहुत निर्मम हुई सरकार हर सुविधा नदारद है –
मगर सरकार के दामन में लग कालिख नहीं सकती।