पर्यावरण
पर्यावरण
पर्यावरण सुगंधित होगा,जब प्रतिभा में हो निर्मलता।
पर्यावरण प्रदूषित करती,स्वार्थजनित मानव कायरता।
जो चेतन प्राणी समाज का,उसका भाव अनोखा होता।
बना सजग प्रहरी वह चलता,मन -भू पर वह अमृत बोता।
खोता कभी नहीं अवसर को,साफ स्वच्छता परम ध्येय है।
है उदार वह दिल से पावन,प्रकृति सुरक्षा मार्ग श्रेय है।
प्रतिभा को सम्मानित करता ,आगे बढ़ता वह चलता है।
स्वस्थ रखे मानस , क्षिति, जल,थल;कभी न पीछे वह मुड़ता है।
है मानव-भूगोल जिंदगी,इस रेखा का वह राही है।
पर्यावरण सुशोभित करने,को वह प्रति क्षण उत्साही है।
प्रकृति भोग की वस्तु नहीं है,यह प्रिय जीवन का दाता है।
इसे सजाना साफ बनाना,यह सब की प्रियतम माता है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र,हरिहरपुर,वाराणसी-221405