पर्यावरण
प्रकृति में समाया परिवार
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दादा नाना, बड़े बुजुर्ग!
हैं वो घर के कल्प वृक्ष,
जो चाहो सो वर पाओ
मजबूती देते, जैसे वट वृक्ष
नीम! पिता की अनुभूति जैसे
नर्म हवा सा सहलाते
पिता जैसे थोड़े कड़वे भी पर
सर्वांग उनका लाभ कराते
गिलोय,अमृता छप्पर पर चढ़ गई
जैसे हों मेरी चाची ताई
आंगन में लदे, आम के बौर से
कोयल ने फिर कूक सुनाई
रामा श्यामा तुलसा जी
मैया कहती, बड़ी बिटिया जी
सबका पूरा स्वास्थ्य सुधारे
कैसे उनको हम बिसारे
पर्यावरण और प्रकृति को बचाएं
इसमें पूरा परिवार समाया
तभी बचेगा सभी का जीवन
कोरोना से समझ में आया।
जीव जंतु भी रहें सुरक्षित
शपथ लें, ना काटें जंगल
पानी ना बर्बाद करेंगे
फिर होगा मंगल ही मंगल
____ मनु वाशिष्ठ