पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता हरेला
उत्तराखंड वासियों का प्रकृति गहरा नाता है जिसकी झलक हमें यहां के हर तीज त्यौहार में देखने मिलती है….. ऐसे तो अक्सर उत्तराखंड के लोग पेड़, पौधों, नदियों, फूलों, नौलों को देवतुल्य मान कर पूजते हैं…. लेकिन इस सब के बीच उत्तराखंड में एक ऐसा त्यौहार मनाया जाता है…… जिससे फसलों के बारे में पूर्वानुमान हो जाता है जिस त्यौहार के जरिए ये पता लगता है की इस साल फसल कैसी और कितनी अच्छी होगी……
हो सकता है आपने इस त्यौहार के बारे में सुना हो लेकिन क्या आप जानते हैं की इस त्यौहार का वैज्ञानिक महत्व क्या है….
दरअसल उत्तराखंड के इस खास त्यौहार का नाम है हरेला…..
वैसे तो हरेला साल में तीन बार मनाया जाता है…… पहला चैत मास में, दूसरा श्रावण में और तीसरा आश्विन मास में…… हांलाकी उत्तराखंड में श्रावण मास के हरेले को ज्यादा महत्व दिया जाता है….. ऐसा इसलिए क्योंकि ये त्यौहार शिव को समर्पित है…. और श्रावण का महीना शिव का पसंदीदा महीना है….. गर्मियों के बाद जब सावन शुरू होता है…….तब हमारा सारा वातावरण हरियाली से भर जाता है,…. इसी लहलहाती हरियाली को बरकरार रखने के लिए हरेला मनाया जाता है…. माना जाता है कि हरेला मनाने से घर में सुख समृद्धि और शांति आती है…….. हरेले को अच्छी फसल का सूचक भी कहा जाता है….. अब ऐसा क्यों हैं इस बारे में हम आगे बात करेंगे लेकिन उससे पहले जान लेते हैं की हरेला मनाते कैसे हैं…..
दरअसल हरेले के त्यौहार से 9 दिन पहले मक्का, गेहूं, उड़द, सरसों और भट जैसे 7 तरह के बीज छोटी टोकरी में बोए जाते हैं….. इसमें रोज पानी भी डाला जाता है……. लिहाजा कुछ दिनों में ये अंकुरित होकर पौधे बन जाते हैं, जिसे हरेला कहते हैं….. फिर इन पौधों को दसवें दिन काटकर घर के बुजुर्ग देवताओं को अर्पित कर परिवार के सदस्यों के कान और सिर पर इनके तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं….
जी रया, जागि रया ,
यो दिन बार, भेटनें रया,
दुबक जस जड़ हैजो,
पात जस पौल हैजो,
स्यालक जस त्राण हैजो,
हिमालय में ह्यू छन तक,
गंगा में पाणी छन तक,
हरेला त्यार मानते रया,
जी रया जागी रया.
ये कोई मामूली पंक्तियां नहीं हैं बल्कि इस पंक्तियों में हमारे घर के बुजुर्ग हमें आशीर्वाद देने के साथ ही हमारे पर्यावरण के लिए जागरूक होने और बार बार हरेले का त्यौहार मनाते रहने के लिए कहते हैं
इन पंक्तियों का अर्थ है
तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का ये दिन-बार आता-जाता रहे, तुम्हारा वंश-परिवार दुब की तरह पनपता रहे, तुम्हें धरती जैसा विस्तार मिले आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले, हिमालय में बर्फ के रहने और गंगा-जमुना में पानी के बहने तक, हरेले का त्यौहार मानते रहो, तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो.”
अब बात करते हैं उस बारे में जिसका आप अब तक इंतजार कर रहे थे….. हरेले के वैज्ञानिक महत्व के बारे में………
उत्तराखंड में हरेले का त्यौहार सदियों से मनाया जा रहा है….. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि उत्तराखंड कृषि पर निर्भर राज्य है….. यहां के लोग पुरातन काल से ही खेती कर अपने घर परिवार को पाल रहे हैं….. ऐसे में हरेला जैसा पर्व हमारे लिए खासा महत्वपूर्ण हो जाता है……. वैज्ञानिक तौर पर देखा जाए तो ये पर्व बीजांकुरण का एक परीक्षण है….. जिससे फसल के बारे में पहले ही अनुमान लगाया जा सकता है की इस साल फसल कैसी होने वाली है……… हरेले में जो मिक्स बीज बोए जाते हैं वो उत्तराखंड की मिश्रित खेती की पद्दति को दर्शाती और उसका महत्व बताती है…… माना जाता है की हरेले में जितनी ज्यादा बालियां आती है उतनी ही फसल अच्छी होती है…..
उत्तराखंड में हरेला इतना महत्व रखता है की….. अगर परिवार का कोई भी सदस्य घर से बाहर रहता है, तो उनके पास हरेला डाक के माध्यम से आशीष के तौर पर भिजवाया जाता है. इसी के साथ ये एक त्यौहार बीजों और पेड़ों के संरक्षण का भी संदेश देता है इस दिन गाजे बाजे के साथ पहाड़ में पौधे लगाए जाते हैं मान्यता है की अगर आप इस दिन एक टूटी टहनी को भी मिट्टी में रोप दो तो वो पनप जाती है…….
अपने आराधयों से जोड़कर पर्यावरण संरक्षण के इस त्यौहार को हमारे पूर्वजों ने आगे पीढ़ियों तक पहुंचाया है और ये हमारी जिम्मेदारी है की हम इसे और आगे लेकर जाएं……….