पर्यावरणीय गीत
पर्यावरणीय गीत- 1
कली कली हर पौध से निकले गली गली हरियाली हो।।
नई उमंगें नई तरंगे हर मन में खुशहाली हो।।
हवा बसन्ती पावन खुशबु, मनभावन बिखराती हो।
कोने कोने में घर की हर, मस्त बहार जगाती हो।।
पवन सुगन्धित करे धरा को, मुसीबतों से खाली हो।
कली कली हर पौध से निकले गली गली हरियाली हो।1।
हर मौसम कोसम का हो कोयल गाना गाती हो।
कुहू कुहू की तान सुनाकर जनगणमन को भाती हो।
काली तन की मन की उजली हर दिल की दिलवाली हो।
कली कली हर पौध से निकले गली गली हरियाली हो।2।
लहलहाते खेत रहे बरसात में बरसे पानी हो।
मस्तानी सी चादर ओढे धरती का रंग धानी हो।
भरे पूरे भंडार करे, खेतों की झुकी हुई बाली हो।
कली कली हर पौध से निकले गली गली हरियाली हो।3।
झूम झूम कर नाच मयुरी बादल घन जब छाये हो।
घुमड़ घुमड़ कर ताल बजाता साथ फुहारें लाये हो।
बरसे बरखा झूम के जैसे मानवता की थाली हो।
कली कली हर पौध से निकले गली गली हरियाली हो।4।
सिंह सियार बिल्ली और चूहा मिलकर जीवन जीते हो।
एक साथ मिल एक घाट पर आकर पानी पीते हो।।
जंगल में मंगल सा माहौल जैसे रोज दीवाली हो।
कली कली हर पौध से निकले गली गली हरियाली हो।5।
2
लहर लहर लहराते रहे चूनर मां की धानी हो.
हरी भरी कर दे धरती को बरसे ऐसा पानी हो.
सावन में रिमझिम बरसते, झूम झूम कर आने दो.
घुमड़ घुमड़ कर बदल कारे, घूम घूम कर छाने दो.
बारिश की हर बूंद बूंद मे खुशिया ही मनमानी हो.
हरी भरी कर दे धरती को बरसे ऐसा पानी हो.
हर जंगल के हर कोने मे नन्हा बीज निकल जाने दो.
किसलय किसलय काली काली को, गली गली खिल जाने दो.
हर आंगन के हर कोने मे महकाओ रतरानी हो.
हरी भरी कर दे धरती को बरसे ऐसा पानी हो.
आने दो खुश्बू कन कन से, महके ये संसार सदा.
पार लगाकर जीवन नैया पाओ खुशी अपार सदा.
मन का घोड़ा ऐसा दौड़े, चल रहे मस्तानी हो.
हरी भरी कर दे धरती को बरसे ऐसा पानी हो.
स्वछ हवा को मानमंदिर मे अपना वास बनाने दो.
पाने को ऐसी सौगते, स्वर्ग धारा पर लाने दो.
फूल फलों से लदा पेड़ जो, धरती की रजधानी हो.
हरी भरी कर दे धरती को बरसे ऐसा पानी हो।।