परिस्थितियां बदल गयीं( लघु कथा)
परिस्थितियां बदल गयीं( लघु कथा)
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“रमेश जी ! माफ कीजिए ,अब मैं आपका मकान नहीं खरीद पाऊंगा ।”सुरेश बाबू की टेलीफोन पर यह बात सुनते ही रमेश कुमार के होश उड़ गए ।
“क्या कह रहे हैं आप ! अभी 15 दिन पहले तो हमारा मकान का सौदा तय हुआ है। आपने रुपयों का इंतजाम करने के लिए 15 दिन का समय लिया था और मैंने मकान खाली करने के लिए 15 दिन का समय लिया। अब मैंने तो मकान काफी खाली भी कर दिया है ।अब आप रजिस्ट्री को मना कैसे कर सकते हैं ?”
सुरेश बाबू ने कहा” जो बात 15 दिन पहले की थी ,अब नहीं रही। परिस्थितियाँ बदल गई । अब आप का मकान नो एंट्री जोन में आ गया है। नया ट्रैफिक प्लान लागू हो गया है । जिस मकान तक न ई- रिक्शा जाए, न कार जाए, न टैक्सी जाए ,वहां पर रहकर मैं भला क्या करूंगा ? आवागमन के साधन तो हमें चाहिए ।”
“लेकिन रात के 8:00 बजे के बाद तो आप आ सकते हैं ?”
“और दिन भर क्या करूंगा ? भाई साहब ! आपके यहां की सड़कें अब आने जाने के लिए नहीं रहीं। हर आदमी ऐसी जगह रहना चाहता है ,जहां चौबीसों घंटे उसे आने- जाने का कोई साधन उपलब्ध हो जाए ।”
” फिर यह तो आपने बहुत बुरी खबर बताई है । “-रमेश कुमार सदमे की स्थिति में आ गए थे । उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें ? मकान बेचकर बेटे के पास मुंबई शिफ्ट होना चाहते थे, इसीलिए मकान बेचकर जा रहे थे ।
“आप ऐसा करिए, 10 लाख कम दे दीजिए ।”
“भाई साहब ! 10 लाख क्या अब तो आपके इस मकान की आधी कीमत भी नहीं रह गई और सच तो यह है कि मैं तो किसी भी कीमत पर यह मकान खरीदने के लिए तैयार नहीं हो सकता। मुझे ऐसी जगह चाहिए जहां से मैं भी हर समय रिक्शा और कार से कहीं जा सकूं और मुझसे मिलने के लिए भी हर आदमी आ सके।”
“20 लाख रुपए कम दे दो आप। “-रमेश कुमार लगभग गिड़गिड़ाने की स्थिति में इस समय थे।
” भाई साहब ! आप किसी और की तलाश करिए। मैं तो ऐसे मकान में आधी कीमत पर भी नहीं आऊंगा। नमस्ते ।”-कहकर सुरेश बाबू ने फोन रख दिया।
रमेश कुमार के चेहरे पर पसीना था। सोफे पर औंधे गिर पड़े ।पत्नी पास ही में खड़ी थी ।बोली “क्या बात है?”
रमेश कुमार बोले” सुरेश बाबू मकान खरीदने से इंकार कर रहे हैं कह रहे हैं कि यह जगह अब रहने के लायक नहीं रही है।”
पत्नी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा” ठीक ही तो कह रहे हैं। यह सब हमारी ही लापरवाही का नतीजा है। सड़कों को हम पतला करते गए। अतिक्रमण होता रहा। अवैध पार्किंग हुआ और यह क्षेत्र केवल अव्यवस्थित बाजार होकर रह गया। सही बात है कौन ऐसी जगह पर आकर रहना पसंद करेगा ।”
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लेखक: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश, मोबाइल 999 761 54 51