परिस्थितियाँ
कभी कभी परिस्थितियाँ मानव को बहुत भारी संकट में डाल देती है ।विषम परिस्थितियों में आदमी अपने को असहाय पाता है ।उसका आत्मबल क्षीण होने लगता है । तब धैर्य पूर्वक विपरीत परिस्थितियों के आने का मूल कारण खोजना चाहिए ।इसके लिए अपने गुरु, मित्र, सच्चे सलाहकार से विचार विमर्श करना चाहिए। दैवीय परिस्थितियाँ में तो एक मात्र सहारा ईश्वर ही हो सकता है लेकिन सामाजिक तथा शारीरिक-मानसिक परिस्थितियों में उचित सलाह स्वीकार करने से परिस्थिति में सुधार दिखायी देता है।आत्मबल कमजोर तभी होता है जब परिस्थितियों को छिपाते हुए, व्यक्ति स्वयं अकेला अनभिज्ञ रूप से परिस्थितियों को पलटना चाहता है ।परिस्थितियाँ स्थायी नहीं होती, धैर्य पूर्वक इंतज़ार करना चाहिए ।आत्मबल तो सबसे बड़ा साथी है जो हर परिस्थिति से निपटना जानता है लेकिन मन की उतावली से आत्मबल टूटने लगता है और परिस्थितियाँ अपना प्रभाव बना लेती है ।इसलिए आत्मबल को टूटने से बचाने के लिए आध्यात्म का सहारा लेना आवश्यक है।विपरीत परिस्थितियों को ईश्वर की विधान प्रक्रिया का अंग मानते हुए, धैर्य पूर्वक अच्छे समय आने का विश्वास रखना चाहिए।प्रेरक इतिहास, स्वाध्याय एवं महापुरुषों की कहानी पढकर आत्मबल को जागृत करते रहना चाहिए ।
सज्जन पुरुष दुःख व कष्ट के समय संवेदना स्वरूपा अच्छी व नेक सलाह देते तथा परिस्थितियों से बाहर निकालने में मददगार साबित होते हैं ।संवेदना में सहयोगी या भाव व्यक्त करने वालों के प्रति हमेशा स्नेह युक्त वार्तालाप करना चाहिए ।संवेदना देने वालों के प्रति सदभावना,उपकार के लिए आभार, धन्यवाद जैसे शब्द वरदान बन जाते है ।
राजेश कौरव सुमित्र