परिवार
परिवार के नाम पर एक बूढ़ी काकी थी उसके साथ।जो उसकी फिक्र किया करती थीं।काम पर से आने के इंतजार में टकटकी लगाए रहती,उसके पर्स में टिफिन का बोतल और पानी रखती तथा जाते जाते ये कहना नही भूलती अपना ख्याल रखना ,गाड़ी तेज मत चलाना और समय पर घर आ जाना।उसे कभी कभी झुंझलाहट भी होती क्या काकी रोज रोज एक ही बात मैं बच्ची थोड़ी हूँ।
और वह बस मुस्कुराते हुए सिर पर हाथ फेर देंती।
उसे नही मालूम था कि क्या वह वास्तव में उसके रिश्ते में कुछ लगती हैं या फिर कोई बेनाम सा भावनात्मक रिश्ता है।क्योंकि जब से उसने होश संभाला था उन्हें अपने घर में ही देखा था।
उसके मम्मी पापा भी उन्हें काकी ही बुलाते थे और अपने मम्मी पापा की इकलौती संतान वह उनका सुनकर उन्हें काकी बुलाने लगी थी।
मम्मी पापा के दुर्घटना में मौत के बाद उन्होंने ही उसे सहारा दिया था।कहने को तो सैकड़ों रिश्तेदार थे पर मुश्किल समय में परिवार के नाम पर काकी ही मजबूती से ढाल बनकर खड़ी रही।जब तक उसकी नौकरी न लगी थी वह अपने बचत के पैसे से घर खर्च चलाने के साथ ही उसे नौकरी के लिए आवेदन भरने हेतु भी पैसे देती थी।
अब तो उसे भी काकी की आदत हो गयी थी।
इधर कुछ दिनों से काकी ने एक नया जिद छेड दिया था,शादी कर लो ,शादी कर लो।
उसे शादी करने से कोई आपत्ति नही थी पर उसे काकी की फिक्र थी वह बुढ़ापे की तरफ कदम बढ़ा चुकी हैं वह काकी को अकेला नही छोड़ सकती।
संयोगवश काकी के कहने पर एक परिवार उससे मिलने आया देखने में संभ्रांत परिवार काफी समझदार लग रहे थे।
शादी की लगभग सारी बातें फाइनल हो चुकी थी।तभी उसने कहा कि काकी मेरे साथ रहेंगी और इतना कहते ही लड़के वाले भड़क उठे।एक तो खानदान का पता नही ,माँ बाप भाई का ठिकाना नही।मेरे बेटे को ससुराल की खातिरदारी भी नही मिल पाएगी उस पर से उपहार में ये काकी जी को लेकर अपने साथ रखें,ऐसा नही हो सकता है।
तभी उसने क्रोधित होकर कहा आपलोग चले जाइये , ऐसी शादी मुझे नही करनी है।लगता है परिवार की महत्ता का आपको नही पता और काकी मेरा परिवार हैं ।परिवार को कष्ट में डालकर मैं शादी नही कर सकती।मैं आजन्म कुँवारी रह जाऊँगी पर काकी को छोड़कर घर नही बसा सकती।
परिवार से हिम्मत और ताकत मिलती है ,और काकी से मुझे वह हिम्मत और ताकत मिलती है।काकी ही मेरा परिवार हैं।जब सारी दुनिया मेरे खिलाफ थी तब काकी ही मेरे साथ थी।अब जब काकी बूढ़ी हो चुकी है,मैं उन्हें छोड़कर अपना घर नही बसा सकती ।और न ही मैं इन्हें छोड़कर अलग खुश रह सकती हूँ।मैं अपने परिवार पर ऐसे कितनी शादियाँ कुर्बान कर दूँ।
परिवार सिर्फ जरूरत पर काम आना नही ,बल्कि हर दुख सुख में साथ निभाना है।