परिवार समाज की एक अपरिहार्य इकाई
भारत एक विपुल व सुसमृद्ध सांस्कृतिक विरासत का स्वामी एक उच्चतम सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित देश है।
“वसुधैव कुटुंबकम “की महान् अवधारणा के मूल में भारत के विज्ञ एवं प्रबुद्ध ऋषि-मुनियों का समग्र विश्व को संचालित करने वाले सार्वभौमिक सूक्ष्म तथ्यों का अन्वेषण छिपा हुआ है। हमारे मनीषियों के विचार अनुसार नारी और पुरुष परिवार नामक संस्था के दो मूल स्तंभ होते हैं। वे दोनों मानो नदिया रूपी के दो तट है जिनके मध्य से परिवार रूपी सरिता निर्बाध प्रवाहित होती है।
परिवार कमोवेश एक सार्वभौमिक, स्थायी व सर्वकालिक संस्था है।यह समाज की निरंतरता अक्षुण्ण रखने वाली एक आधारभूत इकाई है जो इसे जीवंत और अविरल प्रवाहमान रखती है।
भारतीय संस्कृति में परिवार संस्था हीसमाज की मूल इकाई है। परिवार मानव की भावनात्मक आवश्यकताओं की संन्तुष्टि करता है। प्रेम, स्नेह, त्याग, सुरक्षा आदि गुण परिवार मे पाए जाते हैं।
सुप्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री डी. एन. मजूमदार के अनुसार ” परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो एक ही छत के नीचे रहते है, रक्त से संबंधित होते है और स्थान, स्वार्थ और पारस्परिक आदान-प्रदान के आधार पर एक किस्म की चैतन्यता का अनुभव करते है।”
मैकाईवर एवं पेज के शब्दों मे ” परिवार एक ऐसा समूह है जो यौन सम्बन्धों के आधार पर परिभाषित किया जा सकता है। यह इतना छोटा एवं स्थायी है कि इसमे सन्तानोत्पत्ति एवं उनका पालन-पोषण किया जा सकता है।”
परिवार को पति पत्नी तथा उनके बच्चों की एक जैविकीय सामाजिक इकाई के रूप मे परिभाषित किया जा सकता है।
परिवार समाज के बृहद् कार्यो को सम्पन्न करने वाली एक संस्था है।
परिवार सभी समाजों एवं संस्कृतियों मे पाया जाता है। मानव परिवार में ही प्रादुर्भूत होकर मृत्यु पर्यन्त परिवार में ही रहता है।
बच्चों के लिये प्रारंभिक सामाजिक पर्यावरण परिवार ही प्रदान करता है। व्यक्ति का समाजीकरण परिवार से ही प्रारंभ होता है। परिवार में संस्कारों के माध्यम से पड़ा प्रभाव व्यक्ति की आदतों एवं स्वभाव का निर्माण करता है।
परिवार एक संस्था भी है और एक समिति भी। संस्था के रूप में परिवार की प्रकृति स्थायी होती है।
प्रत्येक परिवार में अपने सदस्यों की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये एक अर्थिक व्यवस्था होती है। सन्तानों का पालन पोषण इसी के द्वारा होता है।
सम्पूर्ण सामाजिक ढाँचे मे परिवार सबसे छोटी सामाजिक इकाई है। सभी समाजों मे सामाजिक संरचना का मुख्य आधार परिवार ही है।
परिवार एक ऐसी समिति है जिसका निर्माण आसान है, परन्तु उसे तोड़ना अत्यंत कठिन है।
किसी भी रूप या आकार में हो किन्तु हर समाज में परिवार एक अपरिहार्य इकाई है।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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