परिवर्तन की आस जगाता दोहा संग्रह ‘आएगा मधुमास’
पुस्तक समीक्षा:
परिवर्तन की आस जगाता दोहा संग्रह ‘आएगा मधुमास’
– आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट
‘आएगा मधुमास’ हरियाणा के स्वनामधन्य वरिष्ठ कवि एवं ग़ज़लकार महेन्द्र जैन का हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित दोहा संग्रह है। अक्षरधाम प्रकाशन कैथल द्वारा प्रकाशित इस 80 पृष्ठीय कृति में विविध विषयों पर कुल 309 दोहे संकलित हैं।
कहने की आवश्यकता नहीं कि जिस प्रकार ग़ज़ल में बहर के लिए यति-गति और मात्रा को लेकर एक विशेष साहित्यशास्त्रीय अनुशासन का निर्वहन करना पड़ता है, उसी प्रकार दोहे की रचना में भी लघु आकार की साहित्यिक रचना ‘दोहा’ के संदर्भ में ‘दोहा छन्द’ के रचना विधान अथवा अनुशासन के नियम दोहाकार को मानने पड़ते हैं अन्यथा न तो उसकी रचना को ‘दोहा’ कहा जाएगा और न ही उसे ‘दोहाकार’।
जहाँ तक बात ‘आएगा मधुमास’ के दोहों की है, तो इसमें संकलित सभी दोहे न केवल ‘दोहा छन्द’ के रचना विधान की कसौटी पर खरे उतरते हैं, बल्कि दोहे के रूप में अपनी प्रभावक क्षमता और दोहाकार की गीत-संगीत विषयक समझ एवं साहित्यिक प्रतिभा का परिचय भी देते हैं।
बचपन में भजनों से अपनी सृजन एवं गायन-यात्रा शुरू करने वाले महेन्द्र जैन साहब ने प्रस्तुत कृति के द्वारा न केवल ‘दोहा विधा’ तक पहुँचने का परिचय दिया है, बल्कि इन दोहों में अपने ग़ज़लकार, गीतकार और मुक्तककार रूप में एक अच्छा साहित्यकार होने का परिचय भी दिया है। जीवन से जुड़े विविध प्रसंग एवं विषयों पर इनके दोहे न केवल पाठक अथवा श्रोता का मनोरंजन करते हैं, बल्कि बल्कि अपने आचरण को शुद्ध बना कर उसे सुखी-समृद्ध एवं सफल जीवन जीने का संदेश भी देते हैं। ‘दोहा छन्द’ की यही विशेषता दोहे को साहित्यिक रचना और दोहाकार को साहित्यकार की श्रेणी में लाती है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ‘आएगा मधुमास’ के दोहों से भी महेन्द्र जैन साहब का साहित्यिक व्यक्तित्व उज़ागर होता है।
माँ सरस्वती की आराधना से लेकर जीवन, बेटियां/कन्या भ्रूणहत्या, देश/शहीद, नारी, लोकतंत्र/जनतंत्र, गाँव, रूप-यौवन, माँ, राजनेता, जल/पर्यावरण, धर्म/संस्कार से होते हुए विविध तक पहुँच कर अपने दोहों में दोहाकार ने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से मानव जीवन के लगभग सभी पहलुओं को छूने का प्रयास किया है।
‘माँ सरस्वती’ शीर्षक के तहत दिए गए आठ दोहों में कवि माँ सरस्वती की वंदना करते हुए न केवल अपने काम के पूर्ण होने में माँ सरस्वती की मदद चाहता है, बल्कि वह अपने तथा अपने देश व देशवासियों के लिए भी विशेष निवेदन अर्थात प्रार्थना करते हुए विभिन्न तरह के वर मांगता है। यथा – कमलवासिनी, शारदे, सादर तुझे प्रणाम।
दी हाथों में लेखनी, पूरण करना काम।।
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सरस्वती माँ दीजिए, मुझको यह वरदान।
कलम सदा करती रहे, तेरा ही गुणगान।।
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माँ जगवन्दन भारती, दे ऐसी सौगात।
जन-गण-मन के हित लिखे, कलम सदा दिनरात।।
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मतलब कि कवि अर्थात दोहाकार जन-गण-मन के हित में लिखने की कामना करता है और इस हित का दूसरा नाम ही साहित्य है।
‘जीवन’ के संदर्भ में कवि का कहना है कि मानव जीवन उपहार के समान है। किसी भाग्यशाली को ही इस सुन्दर संसार को भोगने का अवसर मिलता है। पंक्तियां देखिए –
मिलता है इक बार ही, जीवन का उपहार।
भाग्यशाली भोगता, यह सुन्दर संसार।।
कवि के अनुसार यदि जीवन एक सुन्दर फूल है, तो संसार स्वतः ही एक उद्यान है, किन्तु इस उद्यान के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए इसे ‘प्रेम’ से सींचने की आवश्यकता है। इसी आवश्यकता अर्थात संसार में ‘प्रेम’ के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कवि कहता है कि –
जीवन सुन्दर फूल है, गुलशन की है शान।
सींचेगा यदि प्रेम से, चमकेगा उद्यान।।
‘जीवन’ के संदर्भ में कवि ने कुल 13 दोहों के माध्यम से नैतिकता का संदेश देते हुए कहा है कि इस संसार में हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख चाहता है, सम्मान चाहता है, किन्तु यह सब किस्मत वाले व्यक्तियों को ही मिलता है। कवि के शब्दों में कहें, तो हम कह सकते हैं कि –
हर कोई सुख चाहता, ‘औ’ चाहे सम्मान।
किस्मत वाला ही मगर, पाता है वरदान।।
‘बेटियां/कन्या भ्रूणहत्या’ शीर्षक के तहत प्रस्तुत 23 दोहों में कवि ने नीतिपरक कथनों की व्याख्या अपने हिसाब से करते हुए समाज में कन्या भ्रूणहत्या के विरुद्ध जनचेतना लाकर बेटियों को बचाने का प्रयास किया है। यथा-
मत बेटी को मार तू, ओ मूर्ख नादान।
बिन बेटी के घर लगे, जैसे हो शमशान।।
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देवी सम हैं बेटियां, माँ दुर्गा संतान।
फूलों की मुस्कान हैं, सुन्दर इक उद्यान।।
गर्भ में पल रही बेटी के भ्रूण की पुकार को अपना स्वर देते हुए कवि कहता है कि –
क्या मिल जाएगा तुझे, लेकर मेरे प्राण।
माँ मैं तेरी लाडली, बाबुल की हूँ जान।।
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जग में आने दो मुझे, नहीं बनूंगी बोझ।
दिखला दूंगी मैं तुझे, बन इन्द्रा इक रोज।।
इसी तरह के अपने अन्य दोहों में कवि ने बेटियों को विभिन्न उपमानों से अलंकृत करते हुए परिवार, राष्ट्र व समाज में उनका महत्व समझाने का एक सफल प्रयास किया है।
‘देश/शहीद’ शीर्षक के तहत दिए गए दोहों के माध्यम से कवि का राष्ट्रभक्ति भाव सामने आने के साथ-साथ देश की एकता व अखण्डता के लिए नागरिकों से उनका आह्वान भी स्पष्ट रूप में सामने आता है। यथा –
वीर शहीदों का सदा, जग गाता यशगान।
करने से डरते नहीं, प्राणों का बलिदान।।
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विद्वानों ने है सदा, दिया यही संदेश।
आपस में यदि एकता, एक रहेगा देश।।
‘नारी’ शीर्षक के तहत प्रस्तुत दोहों में कवि ने ‘नारी’ को मानव के सामाजिक ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जीवन का भी पूरक बताया है। जितना महत्व मनुष्य के सामाजिक जीवन में नारी का है, उतना ही किसी राष्ट्र के लिए भी है। इन दोनों ही संदर्भों में कवि ने अपने दोहों में नारी के सम्मान व सुरक्षा पर विशेष बल दिया है। यथा-
नारी मानव सृष्टि की, कहलाती है सरताज।
फिर क्यों उसकी लूटता, ये मानव है लाज।।
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जे समाज करता नहीं, नारी का सम्मान।
हो सकता उस देश का, कभी नहीं उत्थान।।
इसी तरह से अन्य शीर्षकों के तहत दिए गए दोहों के माध्यम से भी दोहाकार महेन्द्र जैन ने राष्ट्र व समाज को नैतिक शिक्षा से परिपूर्ण संदेश देने का सार्थक प्रयास किया है। इनके दोहे अपने साहित्यिक गुण-धर्म ही नहीं, बल्कि परिवेशगत अव्यवस्था और सामाजिक कुरीतियों पर तीव्र प्रहार करने की क्षमता भी रखते हैं और कहने की आवश्यकता नहीं कि समाज में ऐसा साहित्य ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक अपने आप हस्तांरित होता है। कबीर के दोहे इसका प्रमाण कहे जा सकते हैं। अगर कबीर के दोहे न होते, तो शायद कबीर भी आज हिन्दी साहित्य में कहीं नहीं होते। अपने दोहों के कारण कबीर हैं, तो मैं कहना चाहुँगा कि क़बीर के दोहों जैसी प्रहारक एवं प्रवाह शक्ति रखने वाले महेन्द्र जैन के दोहे भी उन्हें एक नई पहचान देंगे और इनके माध्यम से दिया गया संदेश ग्रहण करने पर किसी भी परिस्थितिवश पतझड़ की मार सह चुके व्यक्ति, समाज व राष्ट्र के जीवन में एक दिन मधुमास अवश्य आएगा और कवि का यह दावा बिल्कुल सही निकलेगा कि आएगा मधुमास।
– आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट
अध्यक्ष, आनन्द कला मंच एवं शोध संस्थान,
सर्वेश सदन, आनन्द मार्ग कोंट रोड़,
भिवानी-127021(हरियाणा)
मो. – 9416690206
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पुस्तक: आएगा मधुमास
रचनाकार: महेन्द्र जैन
प्रकाशक: अक्षरधाम प्रकाशन, कैथल (हरियाणा)
पृष्ठ: 80 मूल्य: रुपये 150/-