*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
29/07/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
चलते।
हाथों को मलते।।
अकेले चले जा रहे हैं।
कहने को तो हैं बहुत से साथी,
वक्त गुजरने की खुशियाँ मना रहे हैं।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
जलते।
देखा चिरागों को।
न मिटने वाले दागों को।।
शर्म से पानी-पानी हो जाता हूँ मैं,
किस दिशा में जा रहा था स्वयं को छलते।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
ढलते।
सूरज को देखा,
फिर सुबह निकलते।
तो आज ये समझ आया मुझको,
मैं यहाँ क्यों रुक गया था चलते चलते।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
पलते
जो टुकड़ों पर
विद्रोही नहीं हो सकते
अपना सर्वस्व लगाना है मुझे
बिना रुके, बिना थके, लक्ष्य प्राप्ति के लिए।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय