*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
26/07/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
अंगारे।
बरसाते तारे।।
सूरज बहुत क्रोधित
इस प्रदूषित वातावरण से,
मौसम चक्र ही हो चला है परिवर्तित।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
अंगुल।
रखने का स्थान।
नहीं बचा अब श्रीमान।।
पूरी धरती हथिया ली है मैंने,
पंच तत्व अब पूर्णतः मेरा है चंगुल।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
अंचल।
सुविधा से हीन,
राह देखते अचंचल।।
सब डकार के भी खुश नहीं हैं,
इस क्षेत्र के ये जनप्रतिनिधि अंकल।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
अंजन
भूल चुके अब
नयन पाषाण हो गये
मैं शापित ही रहूँगी उम्र भर
मेरे राम अब कभी भी नहीं आ पायेंगे।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय