*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
17/08/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
बरस।
मिला महारस।।
मनचाही सभी इच्छाएँ।
पूरी कर ही डाली समय पर,
विधायुक्त छंदमय विशिष्ट कविताएँ।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
तरस।
रहे थे सदी से।
उद्गमन किये नदी से।।
सागर को मिला दूँ जीते जी अभी,
लाभान्वित हो सके समस्त जनमानस।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
सरस।
यूँ ही नहीं होते,
नहीं बन जाते अयस।
अन्तस जटिल प्रक्रिया होती है,
परिश्रम के बिना सारी फसल अरस।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
चरस
अफीम की खेती
जब तक होती रहेगी
नशा मुक्त समाज की संकल्पना
कभी साकार नहीं हो सकती महाशय।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय